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रिमोट में बंद संवेदना

rimot mein band sanwedna

ऋतेश कुमार

ऋतेश कुमार

रिमोट में बंद संवेदना

ऋतेश कुमार

और अधिकऋतेश कुमार

    उन्होंने इतिहास के

    मनपसंद काले-पीले पन्नों की इबारतों को

    अपने होंठों पर मनमाना बैठाया

    और बार-बार दुहराया

    उन्होंने पढ़े कुछ मधुर कुटिल मंत्र

    और घुसपैठ की हमारे कानों में

    उन्होंने हमारी आस्था के

    कुछ गौरवान्वित दृश्यों को फड़फड़ाया

    सुख के स्वप्निल जादू की माया रची

    और चुरा ली हमारी आँखें

    हमारी अवचेतना की कुंठा को कुरेदते, सहलाते

    अवसुप्त आकांक्षाओं को थपथपाते

    वे कब घुस बैठे हमारे मन में

    हम जान भी नहीं पाए

    आहिस्ता-आहिस्ता उन्होंने

    हमारे दिमाग़ के सभी तंतुओं पर

    बिछा दिया अपना तंत्र-जाल

    आहिस्ता-आहिस्ता

    उन्होंने अपदस्थ कर दिए हमारे उजले विचार

    आहिस्ता-आहिस्ता

    उन्होंने मिला दिए अपने तीखे-ज़हरीले शब्द

    हमारी बोलियों में

    संक्रमित कर दी हमारी भाषा

    अब

    कान हमारे हैं, शब्द उनके

    आँखें हमारी हैं, दृश्य उनके

    कंठ हमारा है, भाषा उनकी

    बाते हमारी है, विचार उनके

    अब

    पीड़ा-ख़ुशी, हँसना-रोना, नाचना-गाना

    पसंदगी-नापसंदगी

    क्या कितना और कब

    वे कर रहे हैं निश्चित

    हमारे तीज-पर्व, त्योहार

    उन्हें मनाने का प्रकार

    हमारी वेदना, संवेदना, उत्तेजना सब बंद है

    उनके रिमोट में

    स्रोत :
    • रचनाकार : ऋतेश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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