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रिक्त स्थान

rikt sthan

रश्मि भारद्वाज

रश्मि भारद्वाज

रिक्त स्थान

रश्मि भारद्वाज

और अधिकरश्मि भारद्वाज

     

    एक पुरुष ने लिखा दुख
    और यह दुनिया भर के वंचितों की आवाज़ बन गया
    एक स्त्री ने लिखा दुःख
    यह उसका दिया एक उलाहना था

    एक पुरुष लिखता है सुख
    वहाँ संसार भर की उम्मीद समाई होती है
    एक स्त्री ने लिखा सुख
    यह उसका निजी प्रलाप था

    एक पुरुष ने लिखा प्रेम
    रची गई एक नई परिभाषा
    एक स्त्री ने लिखा प्रेम
    लोग उसके शयनकक्ष का भूगोल तलाशने लगे

    एक पुरुष ने लिखी स्त्रियाँ
    ये सब उसके लिए प्रेरणाएँ थीं
    एक स्त्री ने लिखा पुरुष
    वह सीढ़ियाँ बनाती थी

    स्त्री ने जब भी काग़ज़ पर उकेरे कुछ शब्द
    वे वहाँ उसकी देह की ज्यामितियाँ खोजते रहे
    उन्हें स्त्री से कविता नहीं चाहिए थी
    वे बस कुछ रंगीन बिंबों की तलाश में थे

    भक्तिकाल में मीरा लिख गईं : 
    राणाजी म्हाने या बदनामी लगे मीठी।
    कोई निंदो कोई बिंदो, मैं चलूँगी चाल अपूठी...

    1930 में महादेवी वर्मा के शब्द थे : 
    विस्तृत नभ का कोई कोना 
    मेरा न कभी अपना होना...

    1990 में लिखती हैं अनामिका :
    हे परमपिताओ,
    परमपुरुषों–
    बख़्शो, बख़्शो, अब हमें बख़्शो!

    2018 में ये पंक्तियाँ लिखते हुए
    मैं आपके लिए तहेदिल से चाहती हूँ : 
    'ग्रो अप एंड मूव ऑन'
    और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए
    20... लिख कर रिक्त स्थान छोड़ती हूँ
    उम्मीद करती हूँ कि अब कोई नई बात लिखी जाए!

    स्रोत :
    • रचनाकार : रश्मि भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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