विद्रोह करो, विद्रोह करो
widroh karo, widroh karo
आओ वीरोचित कर्म करो
मानव हो कुछ तो शर्म करो
यों कब तक सहते जाओगे, इस परवशता के जीवन से
विद्रोह करो, विद्रोह करो।
जिसने निज स्वार्थ सदा साधा
जिसने सीमाओं में बाँधा
आओ उससे, उसकी निर्मित जगती के अणु-अणु कण-कण से
विद्रोह करो, विद्रोह करो।
मनमानी सहना हमें नहीं
पशु बनकर रहना हमें नहीं
विधि के मत्थे पर भाग्य पटक, इस नियति नटी की उलझन से
विद्रोह करो, विद्रोह करो।
विप्लव गायन गाना होगा
सुख स्वर्ग यहाँ लाना होगा
अपने ही पौरुष के बल पर, जर्जर जीवन के क्रंदन से
विद्रोह करो, विद्रोह करो।
क्या जीवन व्यर्थ गँवाना है
कायरता पशु का बाना है
इस निरुत्साह मुर्दा दिल से, अपने तन से, अपने तन से
विद्रोह करो, विद्रोह करो।
- पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 303)
- संपादक : नंदकिशोर नवल
- रचनाकार : शिवमंगल सिंह सुमन
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2006
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