चार लड़कियाँ भी हैं अकेली लड़कियाँ
chaar laDkiyan bhi hain akeli laDkiyan
गौरव सोलंकी
Gaurav Solanki
चार लड़कियाँ भी हैं अकेली लड़कियाँ
chaar laDkiyan bhi hain akeli laDkiyan
Gaurav Solanki
गौरव सोलंकी
और अधिकगौरव सोलंकी
यह उजाले की मजबूरी है
कि उसकी आँखें नहीं होतीं
और वह ख़ुद अपने लिए
अँधेरा ही है।
जिस तरह सब लालटेनें अनपढ़ हैं,
सब पंखे गर्मी से बेहाल,
अब आरामदेह गद्दे खुरदरी लकड़ी और नुकीली कीलों के बीच धँसे हैं,
याहू मैसेंजर का नहीं है कोई दोस्त,
सब ए.सी. कारें सड़कों पर धूप में जल और चल रही हैं,
नंगे हैं महँगे से महँगे कपड़े,
मछलियाँ संसार के किसी भी पानी में डूबकर
आत्महत्या नहीं कर सकतीं,
नहीं है ज़ुबान किसी इस्पात-से गीत के पास भी,
कोई शीशा नहीं देख सकता
किसी शीशे में अपने नैन-नक़्श।
चार लड़कियाँ भी हैं अकेली लड़कियाँ
और नौकरी करने वाले दोस्त काम आएँगे
यह उनकी इच्छा के साथ-साथ
शनिवार और इतवार के होने पर भी निर्भर करता है।
आँखों में काँटे या आग है
इसलिए किताबें और दुखद होती जाती हैं,
फ़िल्में थोड़ी और काली,
शहर थोड़ा और राख
और इस तरह इस कविता में भी विद्रोह है
जिसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता था।
- पुस्तक : सौ साल फ़िदा (पृष्ठ 58)
- रचनाकार : गौरव सोलंकी
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2012
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