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रविवार

rawiwar

आयुष झा

आयुष झा

रविवार

आयुष झा

और अधिकआयुष झा

     

    एक

    बाहर कोहरा ही कोहरा है,
    कमरे में उगा है इंद्रधनुष।

    टेबल से किताबें हटाकर रख दो एक पतंग
    दीवालघड़ी की जगह टाँग दो लाल गुलाब
    कोयलों की कूक को अख़बार की तरह पढ़ो
    तितलियों के रंग गर्म चाय की प्याली हैं
    थामो इसे, देखो ठंडी हो रही है।

    कैलेंडर में फड़फड़ाती मेरी साँसों को
    चूमकर रिहा करो।

    मैं तुम्हारा रविवार हूँ
    डूब मरो मुझमें
    ताकि तुम्हें मिले जीवन।

    दो

    कलाई घड़ी के दाँतों में फँसे हैं प्याज़ के छिलके
    और वह कटी हुई उँगली
    जिसे थाम लोकल ट्रेन में खो गया कहीं बचपन
    और उनींदी रातों की अस्थियाँ
    जो विसर्जित नहीं हो सकीं डायरी में।

    और गड़रिया से भेड़िया बनने के क्रम में
    वे शतरंज के छह वहशी चालें
    सात कदम पीछे हटो
    और अपने लंगड़े घोड़े पर बैठ
    रफ़ूचक्कर हो जाओ।

    पीठ की आँखों से मकड़ी के जाले को
    पंखे से लटकते देखो।

    रोज़ की कटोरी में
    रोज़-रोज़ खून पीने से बहुत बेहतर है
    माँ के सीने से चिपक तुतलाते लहना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आयुष झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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