रातरानी की महक सिर्फ़ रातरानी से उतरती है
ratrani ki mahak sirf ratrani se utarti hai
वियोगिनी ठाकुर
Viyogini Thakur
रातरानी की महक सिर्फ़ रातरानी से उतरती है
ratrani ki mahak sirf ratrani se utarti hai
Viyogini Thakur
वियोगिनी ठाकुर
और अधिकवियोगिनी ठाकुर
रातरानी की महक सिर्फ़ रातरानी से उतरती है
गुलाबों-सी गंध सिर्फ़ गुलाबों से
तुम्हारी तरह कौन चूमता है माथा
कौन फेरता है होंठों पर उँगलियाँ
तुम्हारे सिवा दे भी कौन सकता है
तुम्हारी सी-पीड़ा
हर भी कौन सकता है
सिवा तुम्हारे
हाँ समय भी हरता है—
समय की पीर
पर वह तुम तो नहीं हो
न ही वह तुम है
तुम्हारे सिवा कर कौन सकेगा
मुझे तुम-सा प्रेम
आता भी किसको है भला ऐसा जादू-वादू
सिर्फ़ तुम्हारे आने से खिलता है तन
महक उठती है मन की मौलश्री।
- रचनाकार : वियोगिनी ठाकुर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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