गँदले जलप्रवाह में जैसे बहती हैं चप्पलें
वैसे ही दिशाहीन क़दमों वाला नंगे पैरों भटकने वाला तू
तपती दुपहर में, थका हुआ, रोकता सिसकता चल
और भूख की सलीब पर अपना सदय हृदय टाँग दे
सूखने के लिए।
तू है एक कवि रास्ते का, गूँगी ज़ुबान वाला
अपनी मैली डायरी को नीलाम करता हुआ घूम
मगर हाय, तेरे इन पृष्ठों पर नहीं हैं हस्ताक्षर ईश्वर के
भूल जा सब-कुछ : नाक रगड़
और उठा ले टुकड़ा वह रोटी का :
तेरा मन, दृष्टि, गति, वाणी और छिलके-जैसी त्वचा
कुल मिलाकर तू एक गधा : चुपचाप यातना सह
बड़ों की लातें और ठोकरें ख़ुद की
सब सहते हुए भी आँखों के गढ़ों में भरी हों मुसकानें।
कौओं-जैसे काले, भ्रष्ट, कोढ़ी और वीभत्स
दुनिया के बाज़ार में ये सभी हैं शुद्ध और निर्मल
इनकी पीक की तुलना में तुच्छ और मलिन है तेरी अँजुरी,
इनके सुख की तुलना में तेरा सुख भी है इतना नक़ली।
किसी लात की तरह कभी लटकेगा—
आशावाद का एक पंख और मनचाहे तैरेगा,
तब भी कुत्ते की पूँछ सदृश तेरा ईमान
दिखना चाहिए फटे पायजामे से, हिलता हुआ।
मौत आने तक रोज़ मरने का अपना व्रत
तोड़ मत देना कभी, आदमियों की तरह जीकर,
अंतिम प्रवाह में बहता हुआ तेरा शव
समुंदर में ही जाएगा : इस बात से निश्चिंत रह।
- पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी
- रचनाकार : आरती प्रभु
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1965
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