आदमी
रास्ते जैसा होता है
स्मृतियों के आकाश में
निशानों की तरह फैला हुआ
रास्ते सीमित हैं
जब वे शुरू होते हैं
समाप्त होने लगते हैं
जहाँ रास्ता ख़त्म होता है
ज़रूरी नहीं वहीं हो तुम्हारा मंज़िल
उनका अनुगामी होना
रास्ते नई जगह कभी जाते नहीं
यदि ज़रूरत हो तो
अपनी मंज़िल ख़ुद ही तय करनी होगी
अन्यथा हम रास्तों के छोर पर होंगे
आसमान से गिरकर खजूर में लटके हुए
- पुस्तक : कहानी एक कही हुई (पृष्ठ 102)
- रचनाकार : अशोक शाह
- प्रकाशन : अनामिका प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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