रसोई हो या फिर कोई देश ताक़त से नहीं चलता
rasoi ho ya phir koi desh taqat se nahin chalta
महेश चंद्र पुनेठा
Mahesh Chandra Punetha
रसोई हो या फिर कोई देश ताक़त से नहीं चलता
rasoi ho ya phir koi desh taqat se nahin chalta
Mahesh Chandra Punetha
महेश चंद्र पुनेठा
और अधिकमहेश चंद्र पुनेठा
एक
अपना रसोइया भी
अजीबोग़रीब है
दुनिया के किसी भी
व्यंजन की बात करो
कहता है कि
अपनी ही रसोई से
हुई थी उसकी शुरुआत
अपनी रसोई के
तौर-तरीक़ों को ही
सर्वश्रेष्ठ बताता है
पश्चिमी दिशा की खिड़की से
आने वाली हवा से भी
नफ़रत है उसे
नए से नए व्यंजन में
ख़ूब रस लेता है
गैस के चूल्हे के बिना
काम नहीं चलता उसका
लेकिन
लकड़ी के चूल्हे का
गुणगान करते थकता नहीं
उसी की आग को
सबसे पवित्र कहता है।
दो
टपक्या जले
या फिर सब्ज़ी
जलैन तो दोनों से आती है
आश्चर्य तो तब होता है
जब रसोइया एक पर चुप्पी
और दूसरे पर
हाहाकार मचाता है।
तीन
सोचो ज़रा
किसी दिन दाल-भात
या फिर रोटी-सब्ज़ी
घोषणा कर दे—
थाली पर अपने वर्चस्व की
और
बाहर कर दे
मिर्च
अचार
सलाद
खीर और करेले की सब्ज़ी को
क्या फिर भी
बचा रह पाएग
वही स्वाद थाली का?
चार
सिल खुरदुरा होता है
और बट्टा चिकना
फिर भी
पसंद है साथ-साथ रहना
दोनों चिकने हो जाए
कितना कठिन हो जाता है पीसना।
पाँच
कैसी अजीब बात है
तुम्हें
बर्तनों के टकराने की चिंता नहीं
आवाज़ की
रसोई से बाहर जाने की चिंता है
मालूम होना चाहिए
आवाज़ को बाहर जाने से
नहीं रोका जा सकता है
जब तक
टकराहट को न रोका जाए।
छह
उबलना और उबाल जाना
काफ़ी अंतर है दोनों में
रसोई में उबाल भी जाता ही है
लेकिन रसोईया
उसे चुपचाप जाते हुए
नहीं देखता है
इस घटना का आम होना
रसोईये की घोर लापरवाही है
सिर्फ़ बयान देकर वह
इससे बच नहीं सकता है।
सात
रसोइए से
कभी चावल कम पके होने की
या कभी रोटी जली होने की
या फिर कभी नमक तेज़ होने की
शिकायत करना
क्या रसोईद्रोही होना है?
आठ
जिस रसोई में
सभी भोजन पाते आ रहे हैं
आज तक
तुम चाहते हो उसके बाहर
एक ख़ास धर्म की
नाम-पट्टिका टाँगना
मैं पुरज़ोर विरोध करता हूँ
तुम्हारी इस कोशिश का
भले तुम मुझे
रसोईद्रोही कहो
या फिर धर्मद्रोही।
नौ
उसने रसोई तो सँभाल ली
लेकिन यह समझ नहीं
कि रोटी ताक़त से नहीं बेली जाती है
कभी किनारे फट जाते हैं
कभी बीच में छेद हो जाता है
वह समझ नहीं पाया अब तक
कि रसोई हो या फिर कोई देश
सिर्फ़ ताकत से नहीं चलते हैं।
दस
रहने दो जी, रहने दो...
तुमसे
एक सिनका टेढ़ा नहीं होता है
कुछ उल्टा-पुल्टा ही करोगे
बस जाओ
कुछ झाड़ू-पोंछा करो
नहीं तो
रसोई की जय बोलो
बहुत है इतना
तुम्हारे रसोई-प्रेमी कहलाने को।
- रचनाकार : महेश चंद्र पुनेठा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.