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रंगों की पहचान

rangon ki pahchan

विमल कुमार

विमल कुमार

रंगों की पहचान

विमल कुमार

और अधिकविमल कुमार

    जूते ख़रीदने निकला हूँ बाज़ार में

    तरह-तरह के जूते हैं दुकानों में

    मुझे जूतों का रंग पसंद नहीं रहा

    जो रंग मैं खोज रहा हूँ

    वह नहीं मिल रहा

    यहाँ तक कि वह रंग

    मुझे नहीं मिलता

    रंगों की दुकान में

    आख़िर आप कौन-सा रंग खोज रहे हैं

    साफ़-साफ़ तो कहिए

    मैं कैसे कहू दूँ

    हाँ यही है वह रंग

    वैसे रंगों का पूरा संसार है मेरे ज़ेहन में

    मेरे ख़याल से थोड़ा भिन्न है वह रंग

    मैं दुकानदार को कोशिश करता हूँ समझाने की

    वह रंग जो लाल है

    मगर लाल नहीं

    जैसा कि आप समझ रहे हैं

    जैसा तुम्हारे पास है डिब्बे में बंद

    मुझ पर ही चिढ़ते हैं

    मेरे साथवाले लोग

    तुम सिकोड़ते हो नाक-भौं

    चीज़ों के रंगों पर ही

    मैं जो हूँ

    ख़रीदारी में ख़याल करता रंगों का

    दोस्त मुझ पर झल्लाते

    तुम रंगों के बारे में क्यों बाँधते हो

    इतनी लंबी-चौड़ी भूमिका

    साफ़-साफ़ क्यों नहीं कहते

    सातों में से यह रंग चाहिए

    पलटता हूँ घर आकर

    रंगों की सारी किताबें

    घूमता हूँ शहर में

    देखता हूँ रंग-बिरंगी प्रदर्शनियाँ

    चित्रों में ढूँढ़ता हूँ वह रंग

    मिलता हूँ चित्रकारों से

    पूछता हूँ आपको उस रंग के बारे में जानकारी है

    जिसके बारे में अभी मैं आपसे कर रहा हूँ बातचीत

    देखिए हम रंगों में रंग मिलाते हैं

    और फिर एक रंग बनाते हैं

    उस रंग से भी अगर नहीं मिलती तसल्ली

    तो फिर एक रंग और बनाते हैं

    वैसे हम भी तलाश में हैं एक ऐसे रंग की

    जैसा आपकी बातचीत से लगता है

    रंगों के बारे में सोचते-सोचते

    मैं एक चिट्ठी लिखता हूँ

    माँ को

    मैं एक चिट्ठी लिखता हूँ

    पिताजी को

    तुम आओ छुट्टियों में ज़रूर

    ढूँढ़ों उन चीज़ों को फिर से

    शायद मिल जाए तुम्हें वह रंग

    जो तुम खोजते फिर रहे हो आजकल

    जिसकी वजह से अटका-अटका-सा रहता है तुम्हारा ध्यान

    मैं पहले दीदी के घर जाता हूँ

    दीदी का पति है शराबी

    दीदी का घर चूता है बरसात में

    दीदी की चौकियाँ पुरानी हो गईं

    दीदी निकालती है कुछ कपड़े

    शादीवाले बक्से में से

    दे देती है हाथों में एक पुराना कपड़ा

    यह कुर्ता है मेरा आठ साल की उम्र का

    बहुत देर तक रहता हूँ देखता कुर्ते का रंग

    इसी बीच दीदी का पति आता है अंदर से

    बंद होने लगता है अपने आप दीदी का बक्सा

    दो तीन दिन ठहरता हूँ दीदी के पास

    फिर जाता हूँ पिता के यहाँ

    बाक़ी है सिर्फ़ तीन-चार साल

    पिता की नौकरी

    पिता की खाँसी बढ़ती जा रही

    पिता ने एक कमरा लिया है

    कोने में पड़ी रहती है उनकी टूटी हुई साइकिल

    मैं एक चिट्ठी लिखता हूँ

    बड़ी दीदी को

    आप लोगों ने मुझे इतना बड़ा किया

    क्या आप बता सकते हैं

    कौन-सा रंग लगता था अच्छा

    मुझे अपने बचपन में

    माँ लिखती है

    पिताजी लिखते हैं

    यह सब क्या लिखते रहते हो

    पीला रंग चुन लो

    काफ़ी मंगल है

    या चुन लो फिर सफ़ेद रंग

    शांति के लिए

    दीदी का आता है ख़त

    चिट्ठी में हम कैसे कह दें

    यही है वह रंग

    जिसे तुम पसंद करते थे

    रंगों के बारे में तुम शुरू से ही शंकालु थे

    हमारे पास वे चीज़ें हैं जिन्हें तुम बार-बार देखते थे

    कहते थे इसका रंग मेरे रंग से मिलता-जुलता है

    पिताजी की फ़ाइल में कुछ रंग थे

    जिन्हें तुम बार-बार छूते थे अकेले में

    माँ के पास एक बक्सा था

    जिसे खोलकर तुम बार-बार झाँकते थे

    कहते थे यह रंग मुझे भाता है

    निकालता हूँ उनकी आलमारी से एक किताब

    काफ़ी पुरानी

    पलटता हूँ पन्ने

    याद आने लगता है धीरे-धीरे

    बचपन में कहीं देखा है वह रंग

    तीन-चार दिन ठहरता हूँ पिता के पास

    बातें होती हैं माँ की

    बातें होती है फूआ की

    जाते समय पूछते पिता

    किसलिए आए थे

    कोई ख़ास काम

    मैं कहता हूँ

    नहीं कुछ नहीं, यूँ ही मिलने-जुलने

    पिता के घर से निकलकर

    घूमता हूँ पिता के शहर में

    सोचता हूँ जाऊँ माँ के पास

    माँ रहती है नइहर में

    छोटा-सा है माँ के गाँव का स्टेशन

    स्टेशन से लंबा है रास्ता

    रास्ते में घिर आता है तूफ़ान

    तूफ़ान में गिरते हैं पेड़

    मैं भागा-भागा फिर रहा हूँ

    हवा में उड़ रही हैं दीदी की चौकियाँ

    हवा में उड़ रही है पिताजी की साइकिल

    हवा में उड़ रहा है मेरा कुर्ता

    तूफ़ान...

    तूफ़ान के साथ तेज़ बारिश

    मैं रंगों को अब धीरे-धीरे पहचानने लगा हूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : सपने में एक औरत से बातचीत (पृष्ठ 14)
    • रचनाकार : विमल कुमार
    • प्रकाशन : आधार प्रकाशन
    • संस्करण : 1992

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