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रख सकता हूँ?

rakh sakta hoon?

अशोक वाजपेयी

अशोक वाजपेयी

रख सकता हूँ?

अशोक वाजपेयी

और अधिकअशोक वाजपेयी

    भोर के उजास में

    जाने कौन

    वृक्षों पर बैठा देता है चिड़ियाँ, खिलौनों की तरह,

    जिनकी चहक से ही संभव होता है सूर्योदय?

    क्या मैं रख सकता हूँ कुछ शब्द—

    तुम्हारी नाभि पर स्वेदबिंदु,

    तुम्हारे कुचाग्रों पर चंदनलेप,

    तुम्हारी आँखों में चंचल दीपशिखाएँ,

    तुम्हारे हाथों में अविकच कुसुम,

    तुम्हारी देह पर

    कोई अदृश्य उढ़ावन,

    क्या मैं रख सकता हूँ कुछ शब्द?

    क्या मैं छोड़ सकता हूँ

    तुम्हारे होंठों पर एक प्रार्थना नि:शब्द

    तुम्हारे हृदय में अनहद से गरजता शून्य-शिखर?

    फिर क्या मैं कर सकता हूँ प्रतीक्षा

    अपने धुँध में

    आगे कहीं अलाव सुलगाए हुए

    उसे तापते हुए बैठे समय के साथ

    लपटों में शब्दों के भस्म होने की,

    उदय की?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अशोक वाजपेयी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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