राजेंद्र यादव की याद में मर्सिया
rajendr yadaw ki yaad mein marsiya
वह अब चला गया तो अफ़सोस क्यों है
किसलिए ये मर्सिए
ग़मज़दा हो किसलिए
तुम्हारी महफ़िल में था जो बैठा
शाम ढलते, रात होते
तुम्हारे ताने, तुम्हारे फ़िकरे
सुन रहा था वो सब मुस्कुराके
हज़ार उँगलियाँ थीं उसकी जानिब
काले चश्मे की जिल्द से वो
यूँ देखता था कि कुछ कहेगा
उतरते चाँद तक जो था साथ तुम्हारे
भोर होने से पहले उठा अचानक
सोचा कि कहे ‘ये सभा बर्ख़ास्त होती है’
फिर ये सोचकर चुपचाप चल दिया होगा
कि फ़ैसले हाकिम सुनाते हैं
इस बीच टूटा होगा कोई तारा
और टूटती साँसों के बीच शायद कहा होगा उसने
‘इस महफ़िल को रखना आबाद साथी’
या फिर
कहते-कहते वह रुक गया होगा
क्योंकि फ़ैसले हाकिम सुनाते हैं।
- रचनाकार : फ़िरोज़ ख़ान
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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