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रचना के जन्म पर

rachna ke janm par

कैलाश वाजपेयी

कैलाश वाजपेयी

रचना के जन्म पर

कैलाश वाजपेयी

और अधिककैलाश वाजपेयी

    सारी रात बीती प्रसव-पीड़ा में

    कब उसका जन्म हुआ—नहीं याद

    बेहोशी में

    समय का चंद्रमा

    स्याह पड़ जाता है।

    दुपहर बाद जब आँख खुली

    आवाज़ आई—बधाई!

    यह मेरी अपनी ही

    जनी कविता की

    काकली रही होगी

    बेसुधी में ही याद पड़ा

    मेरे आने के पाँच वर्ष बाद

    घर में जन्मी थी नन्ही कलिका

    सहोदरा

    तब भी कहा था आकर

    धाय माँ ने

    बधाई! और फिर

    मुझे विलग कर दिया गया

    उस दिन के बाद से

    कहीं भी जब, देता है कोई बधाई

    बड़ा डर लगता है

    बधाई के साथ मैं अलगाया गया

    माँ से

    फिर मिली बधाई

    पदक मिलने पर

    तब भी सहपाठी

    उदासीन हो गए

    बन गए ईर्ष्या के अनाम घेरे

    हर प्रशस्ति के साथ

    मित्र अस्त हो गए

    अब जागा हूँ

    साफ़ दिख रहा है

    बधाई विलगाव है।

    मेरी प्रसव-पीड़ा का बिना ज़िक्र हुए

    यह कविता भुगतेगी

    यश और भर्त्सना

    कसाई के हाथों पड़कर

    माँगेगी जीवनदान

    अथवा फिर मेरी अनिच्छा के बावजूद

    झेलेगी

    सत्कार या बलात्कार

    ग़लत सही किसी जौहरी का।

    पारखी-मेज़ पर जो भी होगा

    इस नवजात का

    मैं कानों से अंधा सिर्फ़

    आगे की सोचूँगा।

    हो सकता है उस पर विमर्श करें

    कुछ नए दल्ले

    जिनका धंधा नवशोचनीय है

    गोपनीय तो कुछ रहता नहीं

    फिर ग़म क्या!

    स्रोत :
    • पुस्तक : भविष्य घट रहा है (पृष्ठ 21)
    • रचनाकार : कैलाश वाजपेयी
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1999

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