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रात का घुप्प अँधेरा और वह लड़की

raat ka ghupp andhera aur wo laDki

उमा शंकर चौधरी

उमा शंकर चौधरी

रात का घुप्प अँधेरा और वह लड़की

उमा शंकर चौधरी

और अधिकउमा शंकर चौधरी

    मदद के लिए गुहार लगाती

    उस तेरह-चौदह साल की जवान हो रही लड़की को

    रात के घने अँधेरे में यूँ ही छोड़कर

    आगे बढ़ते चले जाना हमारा पीछा करता है

    पीछा करती है उसकी काँपती आवाज़

    उसकी कातर आँखें, उसके चेहरे का डर

    पीछा करती है रात के घने अँधेरे में

    अपने चेहरे को अँधेरे में घुला देने की उसकी बेइंतिहा कोशिश

    वह लड़की कौन है

    इस घने अँधेरे में कैसे पहुँची है वह यहाँ तक

    उसकी सिसकियों के नीचे दब से जाते हैं ये सारे सवाल

    उस घने अँधेरे में सड़क किनारे खड़ी है लड़की

    और राहगीर गिद्ध की तरह शिकारी हुए जा रहे हैं

    एक तेरह-चौदह साल की जवान हो रही लड़की

    बिछड़ गई है अपने परिवार से

    इस चमकीली दुनिया में इस सच पर विश्वास करना कठिन है

    विश्वास करना कठिन है कि

    इस चमकीली दुनिया की एक लड़की को नहीं है ठोस ज्ञान दिशा का

    या फिर नहीं जानती है वह यहाँ की फ़िज़ाओं में बहने वाली हवा की तासीर

    लेकिन अभी वह लड़की इस घुप्प अँधेरे में खड़ी है और

    इस महानगर की तमाम आशंकाएँ और हादसे उसके चेहरे पर तारी हुए जा रहे हैं

    मेरे पिता कहते थे इस जीवन का सबसे बड़ा सुख है

    ज़रूरतमंदों की मदद करना

    वह अक्सर कहते थे मदद चाहे दाल के एक दाने भर की क्यों हो

    की अवश्य जानी चाहिए

    मेरे पिता ऐसा कहते और अपनी स्मृतियों में खो जाते थे

    कि कैसे उनके पिता दूसरों की मदद में

    दे दिया करते थे अपनी लाठी, कंबल और लोटा तक

    इस महानगर में रात के घने अँधेरे में

    अपनी गाड़ी में बैठ उस लड़की के सामने से गुजरता हूँ

    तो पिता याद आते हैं

    पिता की नसीहतें याद आती हैं

    पिता के संस्कार याद आते हैं

    गाड़ी में साथ बैठी पत्नी मेरी बाँह पकड़ती है

    और थम जाने को कहती है

    हम रुक जाएँ और थम जाएँ इससे पहले ही

    हमारी गाड़ी के शीशे के बग़ल में आता है एक अजनबी

    और धीरे-से फुसफुसाता है

    क्या अभी तब इस मायावी शहर को जान नहीं पाए हो तुम

    बचना है तो भाग जाओ

    यह शहर नहीं एक गुत्थी है जिसे जितनी जल्दी हो सुलझा लो

    वरना इसी तरह एक दिन धर लिए जाओगे साबुत

    वह लड़की वाक़ई ज़रूरतमंद थी

    या इस महानगर के षड्यंत्र का कोई हिस्सा, मैं नहीं जानता

    परंतु उस लड़की की आँखें हमें आज भी बेचैन करती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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