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राख में इबारत

raakh mein ibarat

बृजेश्वर सिंह

बृजेश्वर सिंह

राख में इबारत

बृजेश्वर सिंह

और अधिकबृजेश्वर सिंह

    श्मशान में राख़ से इबारत लिखी थी

    कुछ अंकों में ख़ुदा था,

    कुछ चित्र बने थे,

    जिसमें कुछ गणित, कुछ विज्ञान था,

    यह गीता नहीं कोई और ज़ुबान थी,

    बाक़ी मैं अभी समझ रहा था।

    जीवन का गणित,

    पाइथागोरस की थ्योरम से शुरू होता है,

    मज़े में युवा होता है, और खेल शुरू होता है

    बड़े अंकों का नियम कहता है,

    कोई भी खेल हमेशा वैसा ही नहीं चलता है।

    बात कभी भी बदल सकती है,

    यह गोडेल् के अधूरेपन की थ्योरम कहती है।

    थर्मोडायनैमिक्स का पहला नियम लिखा था,

    तुम तो सिर्फ़ राख़ छोड़कर जा रहे हो यहाँ,

    जिसमें सिर्फ़ कार्बन है, और कुछ खनिज,

    सारी की सारी ऊष्मा तो तुम साथ ले गए,

    ध्यान से देखो असंख्य इलैक्ट्रॉन्स,

    प्रोटॉन्स

    तुम्हारे साथ जा रहे हैं,

    तुम जो लाए थे उसे साथ ले जा रहे हो,

    सारा प्रकाश, सारी ऊर्जा

    देखो तो

    अनेकों फोटोंस तुम्हारी आँख में ही तो समा गए हैं,

    स्मृति बनकर।

    अंतिम निकास पर लिखा था,

    तुम्हें भी तो आना है यहाँ, जा कहाँ रहे हो,

    अपने को चहारदीवारी में बंद करने

    तो कर लो,

    सुरक्षित कर लो,

    सब नहीं कर सकते,

    ग़रीब नहीं कर सकते,

    इसलिए ग़रीब सिर्फ़ एक बार आता है यहाँ,

    जब उसे पहली फ़ुरसत मिलती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बृजेश्वर सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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