मैं देखता हूँ
अपने देश के गली-कूचों की बदरंग दीवारें
जिनकी परछाइयाँ
ईथर की गंध में लिपटी सड़ती हैं
अँधेरे कोने में फ़ाइलों तले खाती हैं चूहों की लेंडियाँ
मवाद की तरह हर जगह से निकाली जाती हैं
और आकाश, धरती, दृश्य सारे और सारी वस्तुएँ
एक स्याह भभके में डूब जाते हैं
और मैं इन्हें कर लेता हूँ नोट
फ़ोटो खींच लेता हूँ इनके कभी।
अपने तहख़ानों में सिगरेट पीते हुए
सरकार की मुख़ालफ़त करने का शग़ल
अपने पाले में नहीं रक्खा है मैंने।
राजा को खाल दी जा सकती है, अपनी आत्मा नहीं
(अनलहक़! अनलहक़!! अनलहक़!!!)
मैंने रख दिया है अपना नाम वहाँ
जहाँ नज़रें हैं गिद्धों की।
मेरी आँखों में घुसी पड़ी हैं, एक-दूसरे में झाँकती वो आँखें
एक अँधेरी चीख़ के बाद की अँधेरी चुप्पी उगी थी जिनमें
मेरे मस्तिष्क रंध्रों पर बार-बार पड़ते हैं छटपटाते दो पैर
अपने निर्दोष होने की साक्षी देते
क्रूरता के दौर की साक्षी देते।
मेरे देश का उदास चेहरा
नाज़ी यातना-शिविरों पर झुकी किसी चुप शाम की तरह
मेरी मज्जा में करता है टंकित यातनाओं का उपन्यास
होता यह है कि
साँसों की सीमा के पार हो जाता है दर्द
अस्पताली गंध में लिथड़े घड़ी के काँटे
मुर्दा रात को राख करते हैं एवम्
बदबूदार कंबल की ओट में धीमे-धीमे
कोई हो जाता है ख़-त-म
मैं सुलगाता हूँ रात का बेचैन अँधेरा
और फूँकता हूँ सुब्ह तलक
आँगन में सूरज की पहली किरण
और मुँह में कसैला स्वाद
खड़े मिलते हैं साथ
और होता यह है कि
मेरी रोटी पर
अपना जूता रख देता है कोई
जब-तब मुझे नंगा कर देता है कोई
सड़क पर या जेल में
बार-बार
मुझे आँखे नीची करने को कहता है कोई
और एक ही जुर्म की सज़ा में
बार-बार
मेरी खाल खिंचवाई जाती है
और मैं इन्हें कर लेता हूँ नोट
फ़ोटो खींच लेता हूँ इनके कभी।
मेरी कविताएँ ये नोट, ये फ़ोटो हैं बस,
और ये नोट, ये फ़ोटो राजनैतिक हैं क़तई
क्योंकि, कविता में संभव है उदासी
उदासीनता बिल्कुल नहीं।
- रचनाकार : उस्मान ख़ान
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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