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पुस्तकालय में सोना मना है

pustakalaya mein sona mana hai

मनोज मल्हार

मनोज मल्हार

पुस्तकालय में सोना मना है

मनोज मल्हार

और अधिकमनोज मल्हार

    काफ़ी कुछ होता है पुस्तकालय में

    पढ़ते-पढ़ते जब नींद आने लगती है

    हम टेबल पर मस्तक टिका

    मस्तिष्क की तनावों को ढीला छोड़ देना चाहते हैं...

    तब, नींद और जागृति के मिलन बिंदु पर

    विचार चित्रों की शक्ल में दस्तक देते हैं,

    लेखकों–विचारकों की शक्लें अज़ीब–अज़ीब-सी होती चली जाती हैं—

    रवींद्र अपनी छड़ी को हथियार बना धमकाने से लगते हैं

    प्रेमचंद फटे जूतों में ही तेज़ क़दमताल करते ज़िरह करने लगते हैं,

    टॉलस्टॉय साइकिल चला रहे होते हैं

    और कैरिएर पर बैठे होते हैं कवि केदारनाथ सिंह।

    अभी शेक्सपियर अभी ‘सेवेन स्टेजेज ऑफ़ लाइफ़’ वाला पुलिंदा

    सीधा कर ही रहे होते हैं कि

    एकदम से कोई नींद से बाहर ला ईशारा करता है–

    ‘पुस्तकालय में सोना मना है’।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज मल्हार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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