पूर्वजन्म में रंजनजी अबलों को बड़ा सताते थे
ख़ून चूस, सुख-चैन मूस उनका उन्मत्त मताते थे
इस पर क्रोधित होकर उन्हें विधाता ने अभिशाप दिया
बोले–अरे अमानुष, तूने कितना भीषण पाप किया
अगले जीवन में दारुण दुख भोगेगा, बिललाएगा
निज कर्मों का दंड, अभागे, लाख गुना तू पाएगा
किसी निजी विद्यालय में तू हिंदी का टीचर होगा
जहाँ निदेशक तेरा तुझसे लाख गुना लीचर होगा
यह सुन रंजन लगे बिलखने–प्रभो, तनिक धीरज धारो
इतनी-सी ग़लती की ख़ातिर यों क़िस्तों में मत मारो
भले बना दो चेला मुझको हारे हुए जुआरी का
बंदर क्रूर मदारी का या कुत्ता सूम-दुआरी का
भले मुझे रौरव दे दो, सीने में सरिया हलवाओ
चाहे आरी से चिरवाओ, गरम तेल में तलवाओ
पर ऐसा अभिशाप नहीं दो, मूरख-मति को माफ़ करो
कुछ लेकर समझौता कर लो, कम कठोर इंसाफ़ करो
रे दुर्बुद्धि, समझता है क्या मुझे विधर्मी दारोगा
कहा विधाता ने अंतिमतः–जो कह दिया वही होगा
यही वजह है, जो रंजनजी यह दुर्जीवन झेल रहे
कोटि रौरवों के दुख-दलदल हर दिन हर पल हेल रहे।
- रचनाकार : राकेश रंजन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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