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धरती का क़त्लगाह

dharti ka qatlagah

मयंक यादव

अन्य

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मयंक यादव

धरती का क़त्लगाह

मयंक यादव

और अधिकमयंक यादव

    जीवन में कई एसे विषय रहे जिन पर लिखना बचा रहा

    मसलन अकेलेपन पर लिख सकूँ

    इतना अकेला कभी हुआ ही नहीं

    अकेलेपन की पवित्रता मुझ जैसे पतितों से दूर रही

    मैंने प्रेम पर लिखना चाहा

    पार्क में बैठे उस जोड़े पर भी

    जिन्हें हर व्यक्ति जाने किन नज़रों से घूर रहा था।

    मैंने चाहा कि तुम्हारे बालों की सुगंध पर लिखूँ पर ठीक-ठीक लिखना बचा रहा

    ख़्याल आते कि पेड़ से झरे इन फूलों पर लिखूँ पर फूलों को बुहारती स्त्रियों को देख कर रुक गया।

    और अब ऐसे दौर में जब सब कुछ ठीक-ठीक लिखना इतना कठिन हो चुका है

    मैं चाहता हूँ निर्ममों की एक सूची बनाना

    जो प्रेम और मनुष्यता के विरोध में उस पार खड़े हैं।

    मैंने पहले ईश्वर लिखा फिर क्रमाँक!

    और बाद के कई पन्ने कोरे छोड़ दिए

    फिर लिखा

    किसी तानाशाह का नाम जो ख़ुद को नरो का इंद्र बताता है

    और फिर काट दिया।

    ऐसे कई तानाशाहों का नाम लिखा

    कुछ को संकेत दे कर छोड़ दिया कुछ के महान कृत्य,

    पर फिर भी, ठीक-ठीक लिखना बचा रहा।

    धरती के स्वर्ग को क़त्लगाह बनाने में सर्वोपरि है इनकी भूमिका

    ये सभी नायक की भूमिकाओं में हैं

    सभी में मची है होड़ फरमान सुनाने की

    सभ्यताओं का सदियों का संचयन

    किसी तानाशाह के एक फ़रमान पर आश्रित है।

    तुम इनके बहकावों में मत आना

    तुम्हें तुम्हारी बहनों ने बढ़ी लाड से पाला है

    तुम्हारी माँओं ने

    तुम अर्पित कर देना यह सारा प्रेम मनुष्यता के नाम और फिर से शुरू करना एक सभ्यता

    पर ध्यान रहे

    इस बार, सबको सभ्य बनाने की होड़ में मत लगना,

    किसी को हक़ नहीं की वह सभ्यता के पैमाने तय करे

    और अब अंत में जब सब कुछ ठीक-ठीक लिखना फिर बचा रह गया है

    मैं यह स्पष्ट कर दूँ

    कि मुझे जंगलों में ही रहने देना

    मेरी माओं के पास

    अवर्णित ही रहने देना हर किसी को

    मत भेजना मेरी बहनों को अपने पतियों के घर

    करने देना मेरे सहोदरों को हर वो चीज़

    जो इस सभ्यता में निषेध थी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मयंक यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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