नहीं,
नहीं नहीं
आज नहीं, आज नहीं पिऊँगा मैं शराब
चू रहा है गगन के रोंये-रोंये में से अंधेर
मेरे हर अंग को कोंचती है चिंगारी तारे से तेज़
भाले जैसे चुभते तो हैं, खुभते नहीं
ज़िंदगी तड़प है एक मौत के नज़दीक
मगर मौत नहीं
चीस उठती है कलेजे में—
जो देती है झिंझोड़—
आँखों में नींद का मजबूर ख़ुमार
कंवल पत्तों पर जैसे कोमल ओस का शृंगार
झुलसती वायु का झोंका कोई दे बिगाड़
मेरे सामने है पड़ा
तेज़ मदिरा का गिलास
जिसके सीने में से मेरे सीने की ही तरह उठी है टीस
चाहता हूँ उस टीस में टीस मिला दूँ अपनी
कुछ तो कम हो सकता है मेरी रूह का अज़ाब
पर नहीं, मैं आज नहीं पिऊँगा शराब
काले आसमान में उठती है एक और भी काली तस्वीर
जो कभी दिखती, छिपती है, फिर दिखती है
बालों की उलझनें वही, वही पीला चेहरा
हाथों में बँधा हुआ बच्चा भी वही
वही होंठों पर पुकार :
मेरे हमवतन, मेरे भाई, मुझे गोली न मार
फ़ाके कर-करके मेरा रंग पीला है, मैं लाल नहीं
मैं सिर्फ़ माँ हूँ, मेरे भाई, मैं जासूस नहीं
मेरे सीने में मेरे बच्चे का दूध—
जहर सा भेद नहीं
इस सीने को मत फाड़
मेरे हमवतन, मेरे भाई मुझे...
उसके सीने में उसके बच्चे की बगल में मेरी गोली का दाग़
किसी कोमलांगना की लज्जा पर जैसे—
गिरा हुआ वहशी कोई, जैसे गिद्ध
अपने जुर्म की यह तस्वीर देखकर
नज़र जाती है फट
थिड़कते हाथों में होंठों तक बढ़ता है
तेज़ मदिरा का गिलास
रूह की कालिख भरी गहराई में से उठती है
एक किरण आवाज़ :
'नहीं,
नहीं, नहीं,
आज नहीं, आज नहीं मैं पिऊँगा शराब!'
- पुस्तक : जंगल में झील जागती (पृष्ठ 6)
- संपादक : गगन गिल
- रचनाकार : हरिभजन सिंह
- प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस
- संस्करण : 1989
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