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पुल पर आदमी

pul par adami

कुमार विकल

कुमार विकल

पुल पर आदमी

कुमार विकल

आदमी की अरक्षा की भावना का

मूल स्रोत कहाँ है

इसके बारे में आपको कोई मनोवैज्ञानिक

या समाजशास्त्री बेहतर बता सकता है

कवि तो केवल—

एक अरक्षित आदमी का बिंब पेश करता है

लेकिन जब—

उसकी कविताओं का मूल्यांकन

पुलिस करने लगती है

वह महसूस करता है—

कि उसकी कविताएँ

किताबें

और प्रियजनों के ख़त तक सुरक्षित नहीं

और वह अपनी ताज़ा ख़बर या दिनचर्या में

किसी फूल का नाम नहीं ले सकता

किसी नदी में तैर नहीं सकता

किसी शराबी की आँखों में झाँक नहीं सकता

क्योंकि फूल बारूदी दुर्गंध फैला सकते हैं

नदी गुरिल्ला बन सकती है

लैंप-पोस्ट के नीचे खड़ा शराबी

शहर का सबसे ख़तरनाक आदमी हो सकता है

तब—वह ज़रूर एक समाजशास्त्री के पास जाता है

और एक विश्वास लाता है

कि कविता आदमी का निजी मामला नहीं

एक दूसरे तक पहुँचने के लिए एक पुल है।

अगर पुल पर चलता हुआ आदमी ही सुरक्षित नहीं

तो पुल बनाने की क्या ज़रूरत है

वक़्त गया है

कि वही आदमी पुल बनाएगा

जो पुल पर चलते आदमी की हिफ़ाज़त कर सकेगा।

स्रोत :
  • पुस्तक : निषेध (पृष्ठ 167)
  • संपादक : जगदीश चतुर्वेदी
  • रचनाकार : कुमार विकल
  • प्रकाशन : ज्ञान भारती प्रकाशन
  • संस्करण : 1972

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