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पुकार

pukar

वसु गंधर्व

और अधिकवसु गंधर्व

    रात के समंदर में

    रात की मछलियाँ

    रात के नमक के बीच तैरती हैं

    ऐसी उत्तेजना से लिपटता है

    अंधकार का यह पेड़ रात की देह से

    कि इसकी उपमा

    माँ के वक्ष से लिपटते बच्चे

    या प्रेमियों के उन्माद से भी नहीं दी जा सकती

    दिन के पक्षी का अंतिम शोर समाप्त हो चुका है

    अंतिम चिट्ठी को पढ़ कर

    अंतिम बार उदास होकर मर चुकी है बुढ़िया

    कभी ना लौट सकने वाला जहाज

    ओझल हो चुका है बंदरगाह से

    ऐसे में अतीत के किसी मरुथल से आती पुकार

    आखिर कितना झकझोर सकती है हृदय को?

    स्रोत :
    • रचनाकार : वसु गंधर्व
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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