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प्रेमिकाएँ

Premikayen

शालिनी सिंह

शालिनी सिंह

प्रेमिकाएँ

शालिनी सिंह

और अधिकशालिनी सिंह

    हमारी स्मृतियों मे जितनी भी

    प्रेम-कहानियाँ विचरती हैं

    जाने क्यों प्रेम में बिसूरती हुई

    स्त्रियाँ ही अधिक नज़र आती हैं

    प्रेमियों संग ब्याहने के बाद भी

    और प्रेमियों से बिछोह के बाद भी

    स्त्रियों के जीवन में प्रेम की हर तान को

    उस्तादों ने इतना बेसुरा मान लिया

    कि चौखट भीतर भी उन्हे प्रेम की हिस्सेदारी से

    लगभग बेदख़ल किया जाता रहा

    और वे तलाशती रहीं

    एक कंधा, एक मन, एक स्पर्श

    जहाँ वे सुबह की दूब से भीगे मन को सहला सकें

    उपेक्षाओं की मार से कलपती लड़कियाँ

    सपनों में बसे नायकों से सपनों में ही मन जोड़ती रहीं

    गीतों में उन्हें सदाएँ देतीं

    स्वप्नों में उन्हें बार-बार बुलातीं

    और तभी तुम मौसम के सबसे चमकते दिनों में

    प्रेमी का रूप धर कर मदमस्त चाल से आए

    और भर लिया अंकवार उन्हें

    अपने प्रेम का दाँव दिखाकर

    तुम तो ठहरे सभ्यता के पुराने धुरंधर

    प्रेम की गोटी फेंकने में माहिर

    तुम्हें सीखने की ज़रूरत नहीं

    तुम्हारी देह अभ्यस्त है

    प्रेम के दाँव-पेंच और झाँसों की गमक से

    लड़कियाँ बाँहें फैलाकर तुम्हारे हौसले को बल देती रहीं

    उनकी समझ के दायरे से बाहर था

    कि प्रेम छल के घोड़े पर सवार होकर भी आता है

    प्रेम करता देखकर भृकुटि तानने वाली आँखों ने

    लड़कियों को फिर-फिर देखा

    पर छल के खारे समंदर से सकुशल बाहर निकालकर

    लाने की जुगत सिखाने की चेष्टा नहीं की

    उनके आस-पास अँधेरे की ऐसी कालकोठरी थी

    कि प्रेम से प्रेम को बिसरा कर

    जीवन से दो चार होने की पड़ताल

    सिखाती धूप भी उन तक पहुँच सकी

    लिखे गए तमाम ग्रंथों में भी

    प्रेम की सुपठित व्याख्या तुमने ऐसी लिपि में लिखी कि

    जिसे उन जैसी दोयम दर्जे की स्त्रियाँ पढ़ नहीं पाईं

    जब कि लिखे जाने चाहिए थे

    बहुत से ऐसे आख्यान

    जहाँ पहले पाठ में ही लिखी होतीं

    कुछ सूक्तियाँ—

    सावधान प्रेम की यात्रा शुरू करने से पहले

    लड़कियाँ अपनी देह उतार कर यात्रा में शामिल हों

    प्रिय के सुख के लिए

    सत्य को असत्य से ढाँपकर जाते समय

    एक बार पुनः स्वयं को जाँच लें

    दुनिया की तमाम प्रेमिकाएँ जब इन आख्यानों को पढ़ें

    तो लगा दें मोहर अपने समर्थन की

    और करवा लें समय की ज़मीन में अपने इस एलान की रजिस्ट्री

    कि प्रेमियों अब तुमसे हमारा निबाह तभी होगा

    जब तुम प्रेम को

    संवेदना की स्याही से

    लिखना सीख जाओगे

    भले समय पर उनकी अर्ज़ी अस्वीकृत कर दी जाए

    पर वे मौसमों के हिसाब से प्रेम के थान पर मज़बूती से

    अपने पाँव जमाए रखना सीख जाएँगी

    कि फिर उसी दिशा में नहीं चलेगा

    पंडितों के दिशाशूल का चातुर्य

    वहीं उपजेगा प्रेम और जीवन

    हाथ थामे

    समानांतर चलते हुए

    और फिर तिलमिलाकर

    लिखेगा फ़ैसला कोई न्यायाधीश

    तोड़ देगा क़लम की निब

    और लगा देगा मुहर तुम्हारे प्रेम के हक़ में

    स्रोत :
    • रचनाकार : शालिनी सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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