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प्रेम में ठगी गई औरतें

prem men thgi gai auraten

अंशू कुमार

अंशू कुमार

प्रेम में ठगी गई औरतें

अंशू कुमार

और अधिकअंशू कुमार

    औरतें सबसे ज़्यादा

    ठगी गईं प्रेम में

    प्रेम पाने के लालच में

    हर बार करती रहीं प्रेम

    लेकिन प्रेम में मिले

    सबसे ज़्यादा ठग और ठेकेदार

    जबकि औरतों को करना था

    सबसे पहले ख़ुद से प्रेम

    और बदलनी थीं

    प्रेम-कहानियाँ और प्रेम-कविताएँ

    रचनी थीं प्रेम की नई परिभाषाएँ

    गढ़ने थे नए मायने

    जिसमें औरतें नाच रही हों

    ख़ुद के लिए

    गा रही हों

    ख़ुद के लिए

    सँवर रही हों

    ख़ुद के लिए

    लड़ रही हों

    ख़ुद के लिए

    सबसे पहले

    सबसे ज़्यादा

    ताकि प्रेम-ठगों को

    बता पाएँ उनकी सज़ा

    और यह भी कि तुम मामूली इंसान के

    दायरे से भी बाहर हो!

    क्योंकि जब तुम्हें

    सबसे ज़्यादा निर्दोष होना था

    तुम निकले सबसे ज़्यादा फ़रेबी

    जब तुम्हें भाव को समझना था

    तुमने की लफ़्फ़ाज़ी

    और जब तुम्हें साथ खड़े रहना था

    तुम दूर-दूर तक नहीं थे...

    ठग को बताना इसलिए भी ज़रूरी है

    ताकि वह प्रेम को समझ सके

    औरत को समझ सके

    ख़ुद को जान सके

    ठग को कठघरे में खड़ा करना ज़रूरी है

    ताकि चौराहे पर चौड़ाई लेते वक़्त

    उसे आभास हो अपने ईमान के बौनेपन का

    ताकि औरत को प्रेम करने और

    उसके साथ खड़े होने के बीच के

    अंतर को वह जान सके

    और पितृसत्ता की फूहड़ दलील में

    अपनी रुग्ण होती काया को टटोल सके

    और जान सके कि

    उसके अंदर अभी भी बचा है :

    सदियों से स्त्री के संताप पर

    उपहास करता एक पुरुष।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अंशू कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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