पश्चिमबंग अभियान का सॉनेट
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दो पदवी वाले खचड़े होते हैं
अन्धरे में, मैदानी रास्तों में, साइलेंसर खोलकर गाड़ी चलाई जाती है
सुंदरवन के मधु के बदले बेनाड्रिल लगाई रोटी खाई जाती है
सर के ऊपर तलवार लिए पैदा हुआ जाता है
मदमत्त होने के बाद देशी या विदेशी ख़याल रखा जाता है
दोपहर में हवा के सीने में रह रहकर हँफनी पैदा होती है
यौवन में माली का काम करने पर पुष्पपराग से एलर्जी होती है—
कैशबुक के प्रथम पन्ने में दाउद इब्राहीम की तस्वीर रखी जाती है।
मकर संक्रांति के प्रारंभ के दिन औरत की गोरी गंध से चिचरी-किलनी पैदा होती हैं
उपयोगितावादी दार्शनिक होने पर माकाल फल से घृणा करनी होती है—
ज्ञान वजन में जितना बढ़ता है, तबीयत उतनी ही ख़राब होती है,
एक व्यक्ति के बेसुरा चीखने पर बाकी लोगों को सुर में ज़िंदाबाद की ध्वनि
निकालनी होती है—
टूटी-फूटी सरकारी बस का चालक-संचालक बनना पड़ता है—
जिधर जाती है हवा, उधर ही पतंग उड़ानी पड़ती है।
- पुस्तक : अधुनांतिक बांग्ला कविता (पृष्ठ 240)
- संपादक : समीर रायचौधुरी, ओम निश्चल
- रचनाकार : मलय रायचौधुरी
- प्रकाशन : परमेश्वरी प्रकाशन
- संस्करण : 2004
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