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पाइथागोरस सोच रहे हैं

paithagoras soch rahe hain

आनंद घोषहाजरा

आनंद घोषहाजरा

पाइथागोरस सोच रहे हैं

आनंद घोषहाजरा

पाइथागोरस बैठे-बैठे सोच रहे हैं

और तीन तारों के साथ खेल रहे हैं

एक तार से यदि अन्य दोनों तारों को इस तरह जोड़ दिया जाए

कि तीनों तार मिलकर एक त्रिभुज बन जाए

त्रिभुज, चतुर्भुज– यानी ज्यामितिक रेखाओं का समाहार

तार से बने त्रिभुजों के शीर्षबिन्दु को पाइथागोरस झंकृत करते ही

त्रिभुज की अंतरात्मा झंकृत हो उठी

अनवरत झंकार से पैदा होने लगे

मीड़, गमक और सुर

मानो यह महाविश्व एक ज्यामितिक आकार भर हो और

हो स्वर का एक अटूट प्रवाह

अनन्त संगीत और रूपमयता अनन्य संयोग

लगता है अभी भी पाइथागोरस

ऐसा ही कुछ सोच रहे हैं...

स्रोत :
  • पुस्तक : अधुनांतिक बांग्ला कविता (पृष्ठ 124)
  • संपादक : समीर रायचौधुरी, ओम निश्चल
  • रचनाकार : आनंद घोषहाजरा
  • प्रकाशन : परमेश्वरी प्रकाशन
  • संस्करण : 2004

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