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डायरी का टुकड़ा

Diary ka tukDa

अनुवाद : दृषद्वती मुखोपाध्याय

अलोक सेन

अलोक सेन

डायरी का टुकड़ा

अलोक सेन

असीम समुद्र के किनारे बहुत सारे डाल-औ-पत्तल

वहीं पक्षी बस गए हैं

उन्हें भा गया है समुद्र का नमक

पानी सब कुछ धो डालता है, इसलिए पानी के ऊपर

उड़ते हैं पक्षी, कभी अचानक मनुष्य भी, फॉस्फोरस भी...

मछलियों के शरीर से निर्गत रोशनी बुलाती हैं पक्षियों को

उनकी भाषा हमारी समझ से परे है

देखता हूँ पक्षियों के उड़ जाने के पश्चात

मछलियाँ वृत्त बनाती हुई चली गईं...

उस ख़ाली जगह में हम मानव-मानवी

बैठे रहते है

असीम समुद्र को देखते

पुन: प्यार करते नमक से...

स्रोत :
  • पुस्तक : अधुनांतिक बांग्ला कविता (पृष्ठ 131)
  • संपादक : समीर रायचौधुरी, ओम निश्चल
  • रचनाकार : अलोक सेन
  • प्रकाशन : परमेश्वरी प्रकाशन
  • संस्करण : 2004

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