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मुझे क़दम-क़दम पर

mujhe qadam qadam par

गजानन माधव मुक्तिबोध

गजानन माधव मुक्तिबोध

मुझे क़दम-क़दम पर

गजानन माधव मुक्तिबोध

और अधिकगजानन माधव मुक्तिबोध

    मुझे क़दम-क़दम पर

    चौराहे मिलते हैं

    बाँहें फैलाए!!

    एक पैर रखता हूँ

    कि सौ राहें फूटतीं,

    मैं उन सब पर से गुज़रना चाहता हूँ;

    बहुत अच्छे लगते हैं

    उनके तज़ुर्बे और अपने सपने...

    सब सच्चे लगते हैं;

    अजीब-सी अकुलाहट दिल में उभरती है,

    मैं कुछ गहरे में उतरना चाहता हूँ,

    जाने क्या मिल जाए!!

    मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक पत्थर में

    चमकता हीरा है;

    हर-एक छाती में आत्मा अधीरा है,

    प्रत्येक सुस्मित में विमल सदा नीरा है,

    मुझे भ्रम होता है कि प्रत्येक वाणी में

    महाकाव्य-पीड़ा है,

    पल-भर में सबसे गुज़रना चाहता हूँ,

    प्रत्येक उर में से तिर आना चाहता हूँ,

    इस तरह खुद ही को दिए-दिए फिरता हूँ,

    अजीब है ज़िंदगी!!

    बेवक़ूफ़ बनने के ख़ातिर ही

    सब तरफ़ अपने को लिए-लिए फिरता हूँ;

    और यह सब देख बड़ा मज़ा आता है

    कि मैं ठगा जाता हूँ...

    हृदय में मेरे ही,

    प्रसन्न-चित्त एक मूर्ख बैठा है

    हँस-हँसकर अश्रुपूर्ण, मत्त हुआ जाता है,

    कि जगत्...स्वायत्त हुआ जाता है।

    कहानियाँ लेकर और

    मुझको कुछ देकर ये चौराहे फैलते

    जहाँ ज़रा खड़े होकर

    बातें कुछ करता हूँ...

    ...उपन्यास मिल जाते।

    दु:ख की कथाएँ, तरह-तरह की शिकायतें

    अहंकार-विश्लेषण, चारित्रिक आख्यान,

    ज़माने के जानदार सूरे आयतें

    सुनने को मिलती हैं!

    कविताएँ मुस्कुरा लाग-डाँट करती हैं

    प्यार बात करती हैं।

    मरने और जीने की जलती हुई सीढ़ियाँ

    श्रद्धाएँ चढ़ती हैं!!

    घबराए प्रतीक और मुस्काते रूप-चित्र

    लेकर मैं घर पर जब लौटता...

    उपमाएँ, द्वार पर आते ही कहती हैं कि

    सौ बरस और तुम्हें

    जीना ही चाहिए।

    घर पर भी, पग-पग पर चौराहे मिलते हैं,

    बाँहें फैलाए रोज़ मिलती हैं सौ राहें,

    शाखा-प्रशाखाएँ निकलती रहती हैं,

    नव-नवीन रूप-दृश्यवाले सौ-सौ विषय

    रोज़-रोज़ मिलते हैं...

    और, मैं सोच रहा कि

    जीवन में आज के

    लेखक की कठिनाई यह नहीं कि

    कमी है विषयों की

    वरन् यह कि आधिक्य उनका ही

    उसको सताता है,

    और, वह ठीक चुनाव कर नहीं पाता है!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : चाँद का मुँह टेढ़ा है (पृष्ठ 91)
    • रचनाकार : गजानन माधव मुक्तिबोध
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2015

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