अगर तुम लिखना चाहते हो
agar tum likhna chahte ho
अगर तुम लिखना चाहते हो
तो अभी इसी वक़्त कुछ लोगों
से दूर चले जाना चाहिए
लेखकों और कवियों के साथ
गोलबंदियाँ करते जीवन गर्त मत करो
यह जानते हुए भी कि वहाँ सिर्फ़ इतराना, फ़साद और जलनख़ोरी बची है
आधा वक़्त तो वह साज़िशों पर बात करते हैं
और विवादों से प्राण पाते हैं
इसमें ऐसा क्या है
जिसे तुम ख़ुद से नहीं सीख सकते
यह तो हर आदमी के ख़ून में बहता है
जिससे हम सबको गुज़रना ही होता है
लिखने की संभावना बाद में मरेगी
तुम उसी वक़्त ख़त्म हो जाओगे
उन प्राणहीन क़िस्सों को बटोरने के लिए मत रुको
उन क़िस्सों के लिए बिलकुल मत रुको
जिसमें सिर्फ़ उनका बर्राना शेष है
जिसे प्रकाशक उनके मरने के बाद यह कह कर
छापना चाहेगा
कि ऐसा था उनका संघर्ष भरा जीवन
बेलौस व्यक्तित्व, आवारगी से भरा
अदम्य जिजीविषा का लेखक
कोई उसकी कमज़ोरियाँ नहीं कहेगा
कोई उसके समझौतों पर बात नहीं करेगा
कोई नहीं बात करेगा
कि घर में घुसते ही वह कितना शोर मचाता था
निश्चित ही वह भला आदमी भी है
जैसे हम सब हैं
सच्चे और झूठे, मेहनती और निकम्मे
संत और लंठ, हिंसक और अहिंसक
कोई भी उनके पाखंड, क्रूरता और शातिरपन पर एक शब्द भी नहीं कहना चाहेगा
पाठकों को भी चाहिए अतिश्योक्ति से भरी जीवनियाँ और सजे हुए संस्मरण
उन्हें हर वक़्त एक पागलपन चाहिए
दिमाग़ पर सवार रहने के लिए प्रेरणाएँ
जिसे वे इंच भर आगे लेकर नहीं बढ़ सकते हैं
वैसे भी जुमलों से सिर्फ़ जुमले तैयार होते हैं
आदमी की राह कहीं नहीं जाती है
अगर तुम लिखना चाहते हो
तो तुम्हें उन जुमलों के समर्थन में क़िस्से जुटाना बंद कर देना चाहिए
तुम लिखने के लिए कहीं जा सकते हो
इसके लिए तुम्हें सूची बनाने की ज़रूरत नहीं है
जैसे उस प्राध्यापक ने बनाया था जिसे ख़ुद को लोक का कवि कहलवाना पसंद था :
1. गाँव के शब्द लाने हैं।
2. अप्रचलित शब्दों को लिखना है।
3. स्त्रियों पर काफ़ी माँग है।
4. पर्यवरण पर कविताएँ नहीं हैं।
5. मीडिया की भाषा के असर को कविता में दिखाना है।
ये सिर्फ़ पाँच हैं
जाहिर है कोई इससे ज़्यादा कैसे गिना सकता है
जो कभी न किया हो
तो निकलो वहाँ से, बिना सूचियों के
वक़्त के हवाले कर दो
उन बूढे, जर्जर कवियों को
उन प्रौढ़ों को जो थक गए हैं
और यह सब चलता रहेगा वाक्य
जिनके लिए अंतिम बचा है
उनके परिवार उन्हें सँभाल लेंगे
बचा-खुचा प्रकाशक देख लेगा
अपने ही क़िस्सों से भरे संग्रहालयों
से बाहर निकलो
कहीं भी चले जाओ
कुछ भी दर्ज कर लो
बहुत सारी आवाज़ें बहुत सारे लोग हैं
पृथ्वी हमारा अभयारण्य है
यही बात हम घूम-घूम कर कितनी बार
एक-दूसरे को कहते रहेंगे।
कोई भी चीज़ जो हमारे दिमाग़ पर हावी हो जाती है
वह कुछ भी हो सकता है
घर, प्रेम, नौकरियाँ, किताब और मूर्च्छित कर देना वाला कोई भी विचार
जो हमें नचा कर अंधा कर सकता है
वक़्त रहते हमें उससे दूर चले जाना चाहिए।
- रचनाकार : सोमप्रभ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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