Font by Mehr Nastaliq Web

पिता

pita

रामजी तिवारी

और अधिकरामजी तिवारी

    दुनिया का सबसे सुरक्षित कोना

    था पिता का होना।

    हम घुड़सवार बने

    उनकी ही पीठ पर चढ़कर

    उन्ही के कंधों ने हमेशा रखा हमें

    दुनिया से ऊपर।

    उनकी उँगलियों ने

    हमें सिर्फ़ चलना ही नहीं सिखाया,

    कैसे बनेगा इस दुनियावी रस्सी पर संतुलन

    यह भी दिखाया।

    मगर अफ़सोस...

    हम अभी ठीक से हो भी नहीं पाए थे बड़े,

    कि उन्हीं के सामने तनी हुई रस्सी पर

    हो गए खड़े।

    सुबह जल्दी उठने की पुकार,

    स्कूल नहीं जाने पर हुंकार।

    गृह-कार्य कौन करेगा,

    क्या इसी आवारगी से पेट भरेगा...?

    पढ़ोगे नहीं तो क्या करोगे,

    सँभल जाओ वरना मेरे बाद रो-रो भरोगे।

    कह रहा हूँ यह सब तुम्हारे लिए ही,

    जैसे अनगिनत वाक्य बने थे दुनिया में

    हमारे लिए ही।

    यहाँ तक थोड़ी डाँट थी, थोड़ा दुलार था,

    थोड़ी हिदायतें, थोड़ा प्यार था।

    कि इसी मोड़ पर

    हमारे दौर के सारे पुत्र

    अपने पिताओं से अलग हो गए,

    उनके रिश्ते-नाते जैसे

    किसी गहरी नींद में सो गए।

    यदि वे कहीं बचे भी

    तो धर्म में ईमान जितना ही,

    बदलेगी एक दिन यह दुनिया

    इस गुमान जितना ही।

    अलबत्ता कुछ पुत्रों ने

    जीवन की रफ़्तार धीमी कर

    अपने पिताओं को अगले मोड़ पर पकड़ा,

    कुछ ने दूसरे तीसरे चौथे

    और कईयों ने तो उन्हें

    बिल्कुल आख़िरी मोड़ पर जकड़ा।

    और जो चलते रहे

    पिता के साथ बनकर साया,

    उन्होंने पिता में दोस्त ही नहीं

    बेटा भी पाया।

    देखा उन्होंने काँपती उँगलियों को

    ढूँढ़ते हुए सहारा,

    मिल जाए हाथों को

    इस भवसागर में कंधे जैसा कोई किनारा।

    कान लगाए रहते हैं

    हर आहट की आस में,

    आँखें चमक उठती हैं

    होता है जब कोई पास में।

    हर छोटी आहट पर

    पूछते हैं कि क्या हुआ,

    हर मदद पर उठाते हैं हाथ

    देने के लिए दुआ।

    बिला नाग़ा देते हैं सलाह

    गाड़ी सँभलकर चलाना,

    जब तक घर पहुँचे

    लगाए रहते हैं टकटकी ढूँढ़कर कोई बहाना।

    अब किससे कहें कि

    बेटा चलना सीखता है

    पकड़कर पिता की उँगलियाँ,

    वह दृश्य आधा ही भरता है उस फ़्रेम को

    जिसे सबसे सुंदर मानती है यह दुनिया।

    आधा फ़्रेम तो

    उस दृश्य से भरता है

    जिसमें एक बेटा

    अपने पिता की टेक बनता है।

    अरे हाय...!

    पिता भी होते हैं पुत्र

    हमने देखा ही नहीं यह मंज़र,

    इस पिता से तो

    यह पीढ़ी ही हो गई बंजर।

    तुम कैसे जानोगे

    कि पिता केवल ‘हिटलर’ ही नहीं होते

    तनी हुई रस्सी पर खड़े,

    केवल डर भय

    दुःख, क्षोभ और अवसाद में

    डूबे हुए बूढ़े-बड़े।

    उनमें तो छिपी होती है

    पिता के साथ भाई, दोस्त और बेटे की कहानी भी,

    वीरान और बंजर स्मृतियों में

    जीवन और रवानी भी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामजी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए