दानिश सिद्दीक़ी के लिए
जिसने सिर्फ़ चोटिल पीठ नहीं दिखाई
दर्ज किए लाठियों के चेहरे भी
हमारी वातानुकूलित हवा में
अस्पताल से लाकर रख दी जिसने
मरते मुँह से छूटी अंतिम आह!
हम पर ओढ़ाई
बॉर्डर पार कर आई शरणार्थी महिला के
ज़मीन सहलाते हाथ की ठंडी छुअन जिसने
उसकी हत्या कर दी गई
हम सबकी नज़र
उसकी रील की तहों में रखी थी
उसका क़फ़न
हमारी आँखों पर फैलता सफ़ेद मोतिया है
किसी दृश्य को देख उसने
रोने से पहले तस्वीर खींची
डरने से पहले तस्वीर खींची
खींच ली तस्वीर भागने से पहले
मरने से पहले तस्वीर खींची
राजधानी की सड़क पर उसने
खींची तस्वीर उस बंदूक़ की
जो उसी के माथे पर तनी थी
धमाकों के शोर में से भी
जब उठती रही अविराम
कैमरे के शटर की आवाज़
तब हमने जाना कि तमाम बड़े धमाकों से
अधिक बलवान है
कैमरे पर की गई
तर्जनी की हल्की चोट
- रचनाकार : शुभम नेगी
- प्रकाशन : समकालीन जनमत
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