फिर भी हुसेन रवि गाँधी कविता लिख रहा है
phir bhi husen rawi gandhi kawita likh raha hai
हुसेन रवि गाँधी
Hussain Rabi Gandhi
फिर भी हुसेन रवि गाँधी कविता लिख रहा है
phir bhi husen rawi gandhi kawita likh raha hai
Hussain Rabi Gandhi
हुसेन रवि गाँधी
और अधिकहुसेन रवि गाँधी
फ़िलहाल बिलकुल फ़ुर्सत नहीं
विश्वास करें, फ़ुर्सत नहीं
कविता लिखने की,
अभी चारों ओर फैली
केवल पलाश फूलों की कविता।
अभी उस कविता के फूल पर
भ्रमर राज़ी नहीं बैठने के लिए
पलाश फूलों पर भँवरा बैठेगा?
हाँ, वैसे उतर सकता,
पाँव में मन पवन की खड़ाऊँ होने पर
ब्रह्मांड भर घूमा जा सकता।
कमर में मंत्रित तलवार हो
तो एक चोट में बूढ़ी असुरनी का
सिर कट सकता।
मगर भँवरा नहीं जाता
पलाश फूलों की ओर
आओ भँवरे संग दोस्ती कर लें
गाड़ी, साड़ी, चूड़ी देकर
या कविता राज्य से निकालने की
धमकी देकर।
फ़िलहाल कविता खेल रही आँखमिचौनी
सितारा होटलों के
सभाकक्ष में।
स्रष्टा जम्हाई ले रहा क्षमता की
मेज़ या कुर्सी तले।
कवि हुसेन रवि गाँधी
फिर भी कविता लिख रहा
कुरुक्षेत्र में बाक़ी बचे
चार घड़ी के
युद्ध के लिए।
- पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 332)
- संपादक : शंकरलाल पुरोहित
- रचनाकार : हुसेन रवि गाँधी
- प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
- संस्करण : 2009
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.