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फलाने के दुल्हिन

phalane ke dulhin

पंकज प्रखर

पंकज प्रखर

फलाने के दुल्हिन

पंकज प्रखर

और अधिकपंकज प्रखर

    वह मशीन में चारा काटती है

    चारे के साथ काटती है दु:खों को

    सानी के साथ गोत देती है ग़मों को

    गोबर के साथ पाथ देती है उपले में

    कभी पूरा हो सकने वाले स्वप्न

    आँचल के खूँट से गठिया के

    रखती है आटा की पिसाई का दाम

    ठीक समय पर गेहूँ में डाल देती है यूरिया

    और दुपहरिया में जाकर हाँक आती है

    अरहर के खेत से बकरियाँ

    सुलगा देती है शाम होने से पहले धुअँरहा

    ताकि धुएँ के साथ उड़ जाए

    उसके हृदय की अनकही पीर

    चेफुआ झोंक के बनाती है भात

    सनई के रस्सी से बनाती है

    गाय का पगहा

    और बरूआ से बीनती है

    बेटियों के गौने के ख़ातिर मोनिया

    माँ कहती है लछमिनिया है वो

    जबसे आई उसका घर भर गया

    मैं कहता हूँ कितनी अभागन है

    उसका बेटा छीन लिया उसकी सौत ने

    जब शहर से आता उसका मरद और उसकी सौत

    तो सोती है खटिया बिछा के भूसऊला में

    बैठती है अकेले आग के पास

    जोड़ती है भूसी का दाम

    और पूरा करती है हिसाब

    बेटा जब कहता है मौसी

    तो कलेजे में मचलता हुआ वात्सल्य

    आँख के कोर पर आकर सूख जाता है

    ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव की बात पर

    जब हँसती है तो उसकी झूलनी शरमा जाती है।

    उसकी झूलनी में झूलते है

    उसके जीवन के जाने कितने रंग

    वह मेरे गाँव की इकलौती औरत है

    जो झूलनी पहनती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज प्रखर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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