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पेड़

peD

मनोहर ओक

और अधिकमनोहर ओक

    पेड़

    पेड़ नहीं होता

    होता है एक जंगल

    समूचा साम्राज्य

    हरा अभेद्य किला

    पत्तों की चहार-दीवारी

    लौटाती हुई सूरज को

    झुकाती हुई हवा को

    सिखानी है तमीज़

    सीधे जीवों को

    चतुर ब्यूहमयी रचना पत्तों की

    सींचता हुआ पैरों तले

    खड़ा

    पढ़ाता है पाठ

    संस्कारहीन जीवों को

    खचाखच भरे हुए

    स्थिर धड़ाधड़ समर-सॉल्ट्स

    कूदकर पत्ते करने वाली हवाओं को

    सभी सँकरे प्रवेश

    परिंदे दोहराते हुए गति को,

    पंखों को फैला-समेटकर

    घोंसले जगह ढूँढ़ने वाले

    साँस सवेरे

    परिंदों के चहचहाते कंठवृंद

    रहस्यमयी रंगों की खिली हुई फुलवारियाँ

    आकाश पार्श्वमंच पर

    वह जो खड़ा रहता है वही गर्व—भरा माथा उँचाकर

    पत्तों की सरसराहट में गहरा होता हुआ

    घँघोलते हए जाने वाले अंतर्गत अँधेरे

    जब कानाफूसी करते है छन कर आई किरणों से

    ‘एक बँगला देखता है सपना

    पहलूदार अँगूठी

    अपनी अंगुली में पहनने का’

    पेड़ बेफिक्र, लुटाता है छाया

    गाफिल भैंसों पर

    गाय-बकरियों पर

    आने वाला बौर महकते हुए

    सयाने होते हुए फूल डौलदार

    गाती हुई कोयल या कि कर्कटते हुए कौवे

    बदन पर रेंगती हुई बेल, पुष्पहीन या ऋतुमती

    इन असंगत घटनाओं में संभव नहीं होता है वह

    वह जो होता है वही दरअसल सुनसान होकर

    जो होता है वही दरअसल एक आरोप लेकर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 44)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : मनोहर ओक
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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