पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा
patta patta, buta buta
माँ, प्रेमचंद की कहानी में
वो जो एक हामिद था—
दादी के चिमटे वाला
यह जो इतनी मारामारी हुई है—
कहाँ गई होगी उसकी दादी?
कहाँ गया होगा उसका चिमटा?
क्या हामिद बड़ा हो गया होगा—
इतना बड़ा, ख़ूब-ख़ूब बड़ा?
मुझसे लंबा या मेरे जितना?
क्या वह दादी को बचा लेगा,
मैंने तो देखा है—
ज़्यादा बूढ़ी औरतें
दौड़ भी नहीं पातीं भगदड़ में!
माँ, तुम बूढ़ी मत हो जाना कभी!
भगदड़ का क्या है, माँ!
वो तो मचती ही रहती है
क्या पता, मैं कभी स्कूल में होऊँ
और मच जाए भगदड़
तो कौन तुमको बचाएगा?
टी.वी. में देखा था न उस दिन—
दंगाई पहले तो औरतों के फाड़ते हैं कपड़े,
फिर पेट
बच्चों का सिर वे शायद
पत्थर पर यों पटककर तोड़ देते हैं
जैसे तुमने उस दिन बेल तोड़ा था
शरबत की ख़ातिर!
मुसलमान क्या होते हैं, अम्मा?
वही ‘पंच परमेश्वर’ के जुम्मन मियाँ, उनकी खाला,
हकीम अंकल और उनकी सेवइयाँ
‘नीम के पेड़' सीरियल के वे
मीठी-खट्टी, चरपरी भाषा बोलने वाले
बाअदब, शाइस्ता लोग?
अंडे वाले? दर्जी? और ताँगे वाला?
ज़ाकिर हुसैन और तबला और ताजमहल चाय
शाहरुख ख़ान और वो अम्मा वो—
वो बूढ़ा इत्रफ़रोश
जो नानी के घर के पिछवाड़े की
छोटी-सी दुकान में
कभी नहीं बिकने वाली ख़ुशबूदार शीशियाँ
यों ही सजाए बैठा रहता है?
और भी कहा होगा बच्चों ने कुछ-कुछ
अगल-बग़ल मेरे लेटे-लेटे,
कुछ सुना मैंने, कुछ नहीं सुना!
अंतिम जो बात सुनी, वह शायद यह थी—
दिखा रही थी बेटी भाई को
इतिहास की किताब में
तस्वीर कोई
और कह रही थी—
ये देखो तो कितना प्यारा था हुमायूँ
मरने की ख़ातिर उसने
ये कैसी शानदार जगह चुनी?
पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरा
और मज़े से मर गया!
पढ़ते-पढ़ते उसको नशा आ गया होगा।
रात आधी हो गई थी
बेहद उमस थी!
दूर किसी के घर से गा रहा था अस्फुट-से स्वर में ट्रांजिस्टर—
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है!
- रचनाकार : अनामिका
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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