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'गिरफ़्तार होने वाले हैं,

आता है वारंट अभी।'

धक्-सा हुआ हृदय, मैं सहमी

हुए विकल आशंक सभी॥

किंतु सामने दीख पड़े

मुस्कुरा रहे थे खड़े-खड़े।

रुके नहीं, आँखों से आँसू

सहसा टपके बड़े-बड़े॥

'पगली, यों ही दूर करेगी

माता का यह रौरव कष्ट?'

रुका वेग भावों का, दीखा

अहा! मुझे यह गौरव स्पष्ट॥

तिलक, लाजपत, गाँधीजी भी

बंदी कितनी बार हुए।

जेल गये जनता ने पूजा,

संकट में अवतार हुए॥

जेल! हमारे मनमोहन का

प्यारा पावन जन्म-स्थान!

तुझको सदा तीर्थ मानेगा

कृष्ण-भक्त यह हिंदुस्थान॥

मैं पुलकित हो उठी! यहाँ भी

आज गिरफ़्तारी होगी।

फिर जी धड़का, क्या भैया की

सचमुच तैयारी होगी॥

आँसू छलके, याद गयी,

राजपूत की वह बाला।

जिसने बिदा किया भाई को

देकर तिलक और माला॥

सदियों सोयी हुई वीरता

जागी, मैं भी वीर बनी।

जाओ भैया, बिदा तुम्हें

करती हूँ मैं गंभीर बनी॥

याद भूल जाना मेरी

उस आँसूवाली मुद्रा की।

कर लो अब स्वीकार बधाई

छोटी बहिन 'सुभद्रा' की॥

स्रोत :
  • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 208)
  • संपादक : नंद किशोर नवल
  • रचनाकार : सुभद्राकुमारी चौहान
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2006

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