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पता है, त(लाश)

pata hai, t(lash)

पीयूष दईया

पीयूष दईया

पता है, त(लाश)

पीयूष दईया

और अधिकपीयूष दईया

     

    एक

    लिखत 
    आँख पढ़त

    हर लेती होनी
    देखती

    पिंजर में अक्षरी
    दर्ददर्शी है

    खुला ज़ख़्म, शब्द में श्मशान

    काता जीव का
    उलटी जीभ

    न(।)र
    सीख मिली

    पढ़त
    आँख लिखत 

    दो

    पौ फ टे क क्ष में
    सा रा बो ल
    अ बो ल

    लो क अ प ना अ के ला
    छो ड़ ग या

    सु न ना
    ख़ा ली लि खा

    दि वं ग त भी त र मौ न रो श नी 

    तीन

    कक्ष में कोख
    बेजान कोई

    बूझ सका न बुझ ने में पा सका
    बुझे बिना

    लगता है, नाल वही
    लगता है, शरीर वही
    लगता है, जान वही

    अभी, अब नहीं

    सफ़ेदा 
    दूसरी ओर से 

    चार

    एकदम चुप
    खुला एक—

    —एक पल
    पलकों में
    पथ

    लौ 
    सभी

    जल गए
    जन्मांतर

    जुड़े हुए हाथों में
    अपलक 

    पाँच

    जग जाने सो
    अभंग एक

    निरंतर
    सच का शब्द

    —पुतलियों में—

    सहिदानी सौंप सब
    करनी

    हर ओर 
    अनाम

    चुप
    च(।)ल 

    छह

    छल सब आस
    एक बात

    दो बार
    कभी देखा नहीं

    निश्चिह्न

    सब में
    पलता

    पात-पात, फाहा-फाहा
    साथ सब, साथी नहीं

    या घट मर 
    उजला

    प(।)र

    सात

    प् या स
    पं चा व का श में

    प्रा प् त र व नि ष् क म् प
    र स व र

    सु न ने में स ब से
    सा फ़ का न अ ल ग मु ख पू रा श री र
    (र ख) छो ड़ उ ठ र हा सा रा सा र स क ल

    प ल है प र
    पा रे पा स पू रा

    अ धू रा
    जा न स का न पा स का  

    आठ

    शांत होती चिता की लपटें
    एक छोटी-सी लौ में बदल
    रही थीं

    श्लोक रचते हुए
    चिता के आलोक में

    शोक की जगह
    आश्चर्य
    —महान् आश्चर्य

    अब कहाँ चिता
    राख है मात्र

    जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु 

    नौ

    जनम झीना
    उचार

    अदृश्य 
    देख लेती
    आँख

    —ख़ाली खोंता
    अंदर 
    से 

    दस

    छुआ जन्म
    फल :

    —पा रहा
    पकड़े हाथ—

    शांत
    सब वास(ना)

    चलती साँस रचती
    मरने की रोशनी

    जन्म अकेला
    फल 

    ग्यारह

    त(लाश) में लिखा पता
    अपने में
    चुप

    शब्द 
    कोष्ठक में 

    बारह 
    एक जनजातीय कविता से प्रेरित 

    मिट्टी का घड़ा फूट जाता है और कुम्हार के पास
    फिर लौट कर नहीं आता। सूत में जो फूल गुँथ गए हैं
    (वे) सूत में ही सूख जाते हैं। ईश्वर ने
    (ऐसा ही) लिख दिया है
    यह जीवन
    लौट नहीं सकता।

    कोई अपना नहीं होगा जब मृत्यु आएगी
    लोग इस मुँह में आग देंगे जब समय पूरा हो जाएगा

    जले हुए धागों से कोई वस्त्र बुनता नहीं
    सुबह खिला फूल, शाम मुरझा गया

    दीये की लौ भी, अभी के लिए
    केवल 

    इस देस 
    अकेले आए हैं, अकेले जाना है

    स्रोत :
    • पुस्तक : त(लाश) (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : पीयूष दईया
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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