Font by Mehr Nastaliq Web

एक आदमी मुझे मिला

ek adami mujhe mila

बोधिसत्व

बोधिसत्व

एक आदमी मुझे मिला

बोधिसत्व

और अधिकबोधिसत्व

    एक आदमी मुझे मिला भदोही में,

    वह टायर की चप्पल पहने था।

    वह ढाका से आया था छिपता-छिपाता,

    कुछ दिनों रहा वह हावड़ा में

    एक चटकल में जूट पहचानने का काम करता रहा

    वहाँ से छँटनी के बाद वह

    गया सूरत

    वहाँ फेरी लगा कर बेचता रहा साड़ियाँ

    वहाँ भी ठिकाना नहीं लगा

    तब आया वह भदोही

    टायर की चप्पल पहनकर

    इस बीच उसे बुलाने के लिए

    आई चिट्ठियाँ, कितनी

    बार आए ताराशंकर बनर्जी, नंदलाल बोस

    रवींद्रनाथ ठाकुर, नज़रुल इस्लाम और

    मुज़ीबुर्रहमान।

    सबने उसे मनाया,

    कहा, लौट चलो ढाका

    लौट चलो मुर्शिदाबाद, बोलपुर

    वीरभूम कहीं भी।

    उसके पास एक चश्मा था,

    जिसे उसने ढाका की सड़क से

    किसी ईरानी महिला से ख़रीदा था,

    उसके पास एक लालटेन थी

    जिसका रंग पता नहीं चलता था

    उसका प्रकाश काफ़ी मटमैला होता था,

    उसका शीशा टूटा था,

    वहाँ काग़ज़ लगाता था वह

    जलाते समय।

    वह आदमी भदोही में,

    खिलाता रहा क़ालीनों में फूल

    दिन और रात की परवाह किए बिना।

    जब बूढ़ी हुई आँखें

    छूट गई गुल-तराशी,

    तब भी,

    आती रहीं चिट्ठियाँ, उसे बुलाने

    तब भी आए

    शक्ति चट्टोपाध्याय, सत्यजित राय

    आए दुबारा

    लकवाग्रस्त नज़रुल उसे मनाने

    लौट चलो वहीं...

    वहाँ तुम्हारी ज़रूरत है अभी भी...।

    उसने हाल पूछा नज़रुल का

    उन्हें दिए पैसे,

    आने-जाने का भाड़ा,

    एक दरी, थोड़ा-सा ऊन,

    विदा कर नज़रुल को

    भदोही के पुराने बाज़ार में

    बैठ कर हिलाता रहा सिर।

    फिर आनी बंद हो गईं चिट्ठियाँ जैसे

    जो आती थीं उन्हें पढ़ने वाला

    भदोही में था कोई।

    भदोही में

    मिली वह ईरानी महिला

    अपने चश्मों का बक्सा लिए

    भदोही में

    उसे मिलने आए

    जिन्ना, गांधी की पीठ पर चढ़ कर

    साथ में थे मुज़ीबुर्रहमान,

    जूट का बोरा पहने।

    सब जल्दी में थे

    जिन्ना को जाना था कहीं

    मुज़ीबुर्रहमान सोने के लिए

    कोई छाया खोज रहे थे।

    वे सोए उसकी मड़ई में... रात भर,

    सुबह उनकी मय्यत में

    वह रो तक नहीं पाया।

    गांधी जा रहे थे नोआखाली

    रात में,

    उसने अपनी लालटेन और

    चश्मा उन्हें दे दिया,

    चलने के पहले वह जल्दी में

    पोंछ नहीं पाया

    लालटेन का शीशा

    ठीक नहीं कर पाया बत्ती,

    इसका भी ध्यान नहीं रहा कि

    उसमें तेल है कि नहीं।

    वह पूछना भूल गया गाँधी से कि

    उन्हें चश्मा लगाने के बाद

    दिख रहा है कि नहीं।

    वह परेशान होकर खोजता रहा

    ईरानी महिला को

    गांधी को दिलाने के लिए चश्मा

    ठीक नंबर का

    वह गांधी के पीछे-पीछे गया कुछ दूर

    रात के उस अंधकार में

    उसे दिख नहीं रहा था कुछ गांधी के सिवा।

    उसकी लालटेन लेकर

    गांधी गए बहुत तेज़ चाल से

    वह हाँफता हुआ दौड़ता रहा

    कुछ दूर तक

    गांधी के पीछे,

    पर गांधी निकल गए आगे

    वह लौट आया भदोही

    अपनी मड़ई तक...

    जो जल चुकी थी

    गांधी के जाने के बाद ही।

    वह जली हुई मड़ई के पूरब खड़ा था

    टायर की चप्पल पहनकर

    भदोही में

    गांधी की राह देखता।

    गांधी पता नहीं किस रास्ते

    निकल गए नोआखाली से दिल्ली

    उसने गांधी की फ़ोटो देखी

    उसने गांधी का रोना सुना,

    गांधी का इंतज़ार करते मर गई

    वह ईरानी महिला

    भदोही के बुनकरों के साथ ही।

    उसके चश्मों का बक्सा भदोही के बड़े तालाब के किनारे

    मिला, बिखरा उसे,

    जिसमें गांधी की फ़ोटी थी जली हुई...।

    फिर उसने सुना

    बीमार नज़रुल भीख माँग कर मरे

    ढाका के आस-पास कहीं,

    उसने सुना रवींद्र बाउल गाकर अपना

    पेट जिला रहे हैं वीरभूम में

    उसने सुना, लाखों लोग मरे

    बंगाल में अकाल,

    उसने पूरब की एक-एक झनक सुनी।

    एक आदमी मुझे मिला

    भदोही में

    वह टायर की चप्पल पहने था

    उसे कुछ दिख नहीं रहा था

    उसे चोट लगी थी बहुत

    वह चल नहीं पा रहा था।

    उसके घावों पर ऊन के रेशे चिपके थे

    जबकि गुल-तराशी छोड़े बीत गए थे

    बहुत दिन!

    बहुत दिन!

    स्रोत :
    • पुस्तक : दुःख-तंत्र (पृष्ठ 17)
    • रचनाकार : बोधिसत्व
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2004

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए