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पारस का परस

paras ka paras

ज्ञानेंद्रपति

ज्ञानेंद्रपति

पारस का परस

ज्ञानेंद्रपति

और अधिकज्ञानेंद्रपति

    पारस का परस है, हुआ जाता है सुनहला

    मन मेरा, लोहित था; मन की अँगुलि से सहला

    जब तुमने अपना नाम लिखा मेरे मन की छाती पर

    विहँस पूछा फिर, कहो, मन कुछ बहला!

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 129)
    • संपादक : कुमार मंगलम
    • रचनाकार : ज्ञानेंद्रपति
    • प्रकाशन : राजकमल पैपरबैक्स
    • संस्करण : 2022

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