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पानी से जिउ उबियाइ गवा

pani se jiu ubiyai gava

अनुज नागेंद्र

अनुज नागेंद्र

पानी से जिउ उबियाइ गवा

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    सब ताल तलइया मुची-मुच्च,

    गड़ही-गड़वा उतिराइ गवा।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    हप्तन से दइव कोपान अहयँ,

    चारिउ मू हाहाकार अहय।

    कुल गाँव-मोहल्ला साँसत मा,

    बूड़त सबकय घरबार अहय।

    चंदर काका के भितरे तक,

    गाँठी भै पानी भरा अहय।

    ग्यानिव कै कोठरी गिरति अहय,

    जे जीतय जिउ अधमरा अहय।

    जेहकय खेती होइगय उछिन्न,

    चिंता मा पगलाइ गवा।1।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    कच्ची बखरी, खपरैल, छानि

    सब भरभराइ चुइ परति अहयँ।

    मनई-गोरु सब भें बेहाल,

    बोकरी दबाइ के मरति अहयँ।

    जब करकराइ के बरसा तौ,

    नरदा फँसि गवा नताने कय

    चँहटा मा तेलहिन चाची कय

    गिरि गवा टप्स एक काने कय।

    कतहूँ केहू नहीं ना सलकंते,

    सबकय चेहरा मुरझाइ गवा।2।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    पानिन उल्चय मा जुटा अहयँ,

    घरभय अब पारा-पारी सब।

    पपुवाइन चढीं अटारी पय,

    नीचे पंडित बनवारी सब।

    गति बाटय बूढ़ पुरनियन कय,

    एहि बूडा मा खोब पस्त भयेन।

    का मनइन-गोरू,पसु-पच्छी?

    कीरा-बीछी सब त्रस्त भयेन।

    गउना अस तइरय पानी मा,

    जस नाउ केहू तइराइ गवा।।3।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    एहि घोर मुसीबत मा सबकय,

    सब मदत करय मा लाग अहयँ।

    कुछ जने घरे से भीटा पय

    खटिया-मचिया लइ भाग अहयँ।

    केहु बइठा अहय बंड़ेरी पय,

    केहु जिउ लुकवाये पेड़े पय।

    चारिउ मू छीछालेदर बा,

    सड़की चकरोटे मेड़े पय।

    ओढ़ना-कपड़ा, कथरी-गुदरी,

    सब सीड़ा मा लसियाइ गवा।4।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    सई नदी उफनानि अहय,

    गाँवन कय हालत खस्ता बा।

    गंगा माई की किरपा से,

    सूझत ना एक्कव रस्ता बा।

    घर-खेत, गाँव, रस्ता पँइड़ा,

    बगिया पानी से भरी अहय।

    कउनी मू गाड़यँ दुइ दिन से,

    चंदू कय बछिया मरी अहय।

    जिउ बहुतय गाढ़े परा अहय,

    कइसा दुरदिन आइ गवा।5।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    जबसे चिर्री गिरति अहय,

    जबसे बूँदाबाँदी बा।

    नेतन कय हाल बताई का,

    कुछ कय तौ एकदम चाँदी बा।

    हेलीकप्टर से उड़त-जमत,

    दौरा पय दौरा करत अहयँ।

    मनई माछी-मच्छर अस,

    बिन दाना-पानी मरत अहयँ।

    ना हया-सरम, ना दया-धरम,

    इनका कहाँ सिखाइ गवा।6।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    लागत बा जइसे इंद्रदेव,

    धरती से बहुत कोपान अहयँ।

    सब त्राहि-त्राहि चिल्लात अहयँ,

    ये मूँदे दुइनव कान अहयँ।

    भारी जन-धन कय चारिउ मू

    यहि परलय मा नसकान अहय।

    एन सबकी मदत मा रातिव-दिन,

    सेना-सासन हलकान अहय।

    जे पाइस राहत सामग्री,

    नयी ज़िंदगी पाइ गवा।7।

    पानी से जिउ उबियाइ गवा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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