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पानी की थकन

pani ki thakan

प्रांजल धर

प्रांजल धर

पानी की थकन

प्रांजल धर

और अधिकप्रांजल धर

    दिखो मुख के किनारे की

    लहलहाती घास

    और झुरमुट के आस-पास

    कोमल अँगुलियों का

    परिचित स्पर्श!

    ‘गमुशा’ की बुनावट में

    मन नहीं रम पाता अब,

    कुपोषित हो गए मांसल फूल।

    उलझ गए हैं

    रेशम के चमकते धागे

    सुआलकूची के दलदल में,

    प्रथम प्रार्थना के

    अजनबी तारों की तरह

    जूठन बीनते बेसहारों की तरह।

    नामदांग का पानी

    एक असमिया आख्यान

    और सिमटी वीरानी

    लेकर बहा जा रहा है,

    कहा जा रहा है

    शोरगुल

    उसकी ख़ामोशी को।

    यह प्रवाह हर ताम्बूल के साथ

    चढ़ा जा रहा है

    हृदय की सूनी सीढ़ियों पर

    खट-खट-खट-खट...

    कौन समझेगा दिशांग की व्यथा

    झरनों के जल की जबानी!

    इसीलिए

    थक गया चिल्लाते-चिल्लाते

    पूर्वोत्तर के पहाड़ी झरनों का

    मीठा स्वादिष्ट पानी।

    पानी की थकन बेपानी हुई जाती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रांजल धर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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