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पानी के स्पर्श के लिए त्वचा उतारती हूँ

pani ke sparsh ke liye twacha utarti hoon

नताशा

नताशा

पानी के स्पर्श के लिए त्वचा उतारती हूँ

नताशा

और अधिकनताशा

    तुम्हारे स्पर्श और मेरी त्वचा के बीच जो बाधा है

    दरअसल वही मुझे असभ्य नहीं होने देता

    प्रेम प्राप्य है असभ्यताओं, लांछनाओं में ही

    यह जीवन इसी ग्लानि की भेंट चढ़ेगा

    अलभ्य चीज़ों के इतिहास में दर्ज़ होगा प्रेम

    मेरे एकांत पर तुम्हारे छेनी-हथौड़े की

    सजगता सलामत रहे

    चोट के अनुपात में किसी खाने में

    फिट नहीं बैठती

    मेरी आत्मा को इतना घिसा है तुमने

    मेरी नींद एक ख़रगोश है

    तुम्हारी माँद की रखवाली के सुख में जागता

    एक कमज़ोर की रखवाली पर हँसोगे तुम

    जबकि नींद से हारा हुआ व्यक्ति ही

    सबसे कमज़ोर होता है

    यह मानोगे नहीं!

    कैसे खट्टे हो गए होंगे वे अंगूर

    जो तुम्हारे हिस्से से बाहर रहा

    बस मन बहलाया यह सोचकर

    इधर मेरे भीतर उतरता रहा

    शर्करा तुम्हारे प्रेम का

    वास्तव में यह जो तुमसे छूटा है

    वह कोई मुहावरा नहीं

    अधूरा महाकाव्य है

    जिसमें असंख्य मुहावरों के अर्थ

    गहन वाक्यों के सहचर हैं

    तुमने जो छोड़ा है

    इसका दुःख भी करूँ तो चलेगा

    लेकिन कह नहीं सकती

    मिठास का अम्लीय विस्थापन

    तुम्हें मुक्त करे करे!

    स्रोत :
    • रचनाकार : नताशा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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