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पहचानती हो जिसका हाथ था

pahchanti ho jiska hath tha

हरप्रसाद दास

हरप्रसाद दास

पहचानती हो जिसका हाथ था

हरप्रसाद दास

और अधिकहरप्रसाद दास

    पहचानती हो जिसका हाथ था

    धनुष अंधकार का

    जिसके पाँव थे तीखे दो पहाड़ों के बीच

    पथ सुदूर का

    आँख के तारे से भी अथाह नींद उसकी

    सुनहरे सपने के भीतर, तरल आग बनकर

    चिह्न अयस्कांत का?

    जानती हो उसे

    जो खेल ही खेल में

    गढ़ गया एक दुनिया

    जिसका अंधकार बना था

    चकमक की झलक में

    जिसका उजाला था परिचय से भी उजला

    अंधकार की भीगी दीवार पर!

    वह गोला बनाते समय

    जल गया जो चैतन्य, वह?

    वह ढेला मार

    काँच तोड़ता शुक है?

    वह महानुभाव युधिष्ठ चौकीदार?

    या वह नटिया धनुर्धर

    ऑपेरा का?

    मुझे देख

    मेरी आँख में यदि वे हैं

    तो तू भी है मेरी देश

    तू है तभी रहेगा

    हिरन का वंश चन्द्रभागा में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देश (पृष्ठ 15)
    • रचनाकार : हरप्रसाद दास
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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