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ओझल

ojhal

जसवंत दीद

और अधिकजसवंत दीद

    कितने पानी तेरे भीतर अरे नदी!

    इतना साफ़ जल

    कि चूमने को चाहता दिल मेरा

    गहराई अचानक

    स्याह, हरे, नीले, सलेटी घने

    पतले बहुत पतले पानी में बदल जाए

    और धरती के नीचे बहुत नीचे

    तुम्हारी लीला

    मैं आँखें बंद किए

    तुम्हारे साथ...

    तू मुझे लिए घूमती

    पानी के नीचे, धरती के भीतर

    और फिर छोड़ देती हाथ मेरा

    मैं गुम हो जाता भीतर पानी के

    और फिर जाता ऊपर किनारे

    पता नहीं कैसे

    और तुम खड़ी होती किनारे

    हँसती हुई

    मैं तुम्हारा पल्लू पकड़े

    हैरान बाहर आता

    और तुम फ़िर अचानक ओझल हो जाती

    हँसती आवाज़...

    मैं तुम्हे ढूँढ़ने के लिए

    पानी से गुज़ारिश करता

    आँसू बहाता

    एक आशीर्वाद मुझे आसरा देता

    और तुम ओझल

    आशीर्वाद में

    मुझे प्यार करती हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कमंडल (पृष्ठ 94)
    • रचनाकार : मूल एवं हिंदी अनुवाद जसवंत दीद
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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