ओह कइती खाना बँटत अहै, जैइसे काने मा भनक पड़ी।
मधु कै माछी अस छेंकि लेहेन, कुछ अँटा न पब्लिक सनक पड़ी।
अस मची हुआँ छीनाझपटी, गिरि के सैकड़न चोटाइ गयेन।
फिर परी पुलिसिया लाठी तौ, बिन खायेन पिये अघाइ गयेन।
बस अउर रेल की भगदड़ मा, मनई अस पीसा जात अहै।
कउनिव मू ओर न छोर मिलै, बस मूँड़य-मूड़ देखात अहै।
दुनिया कै रेला उमड़ि परा, हर एक बेवस्था कम होइगै।
येहि सासन औ परसासन की आखिर नाकी मा दम होइगै।
केहु बरे गले कै हड्डी हम, केहु बरे बना नासूर अही।
भइया हम तौ मजदूर अही।
- रचनाकार : अनुज नागेंद्र
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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