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दूसरे शहर का आदमी

dusre shahr ka adami

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

सच्चिदानंद राउतराय

सच्चिदानंद राउतराय

दूसरे शहर का आदमी

सच्चिदानंद राउतराय

और अधिकसच्चिदानंद राउतराय

    दूसरे शहर से आए थे अपरिचित सज्जन।

    एक सज्जन।

    (बस, इतना ही उनका परिचय है)

    आँखों में उनकी खारी नदी की हवा और भय।

    बातें सीधी-सपाट,

    बिल्कुल दो-टूक।

    उनमें नहीं है हमारी तरह घुमाव।

    और कमीज़—

    उस पर पड़े हैं दो-एक लाल-लाल छींटे।

    शायद बिदाई के समय के सिंदूर के चिह्न हैं।

    कुछ अटपटा-सा लगता है उनका उच्चारण।

    (अंतिम शब्द ज़रा भी प्रकाश्य नहीं)

    और व्याकरण—

    कर्ता कभी छोड़ता नहीं क्रिया का साथ।

    उस सुदूर पर्वत का एकांत सुनसान

    तड़बन्ने की छाया और चढ़ाई-भरे जंगल,

    हाँफते और चढ़ते-उतरते रंग,

    वहाँ का मौसम

    छोड़ गया है निशान।

    धोती हालाँकि बनी है मद्रास में,

    फिर भी यहाँ वैसी किनारी कहीं देखी नहीं।

    क़लम हालाँकि यहाँ का नहीं है बना—

    याद नहीं आती देखा हो वैसा ही कहीं और।

    उस क़स्बे का कोई दुकानदार

    कहीं से लाया हो यहाँ, ऐसा नहीं है,

    (वहाँ की चीज़ें वहाँ कुछ ही हैं,)

    उससे अच्छी, उससे बढ़िया

    यहाँ हो सकती है।

    लेकिन ठीक वैसी ही

    हठात् पाई जा सकती है?

    शायद कुछ खो गया है

    वे सज्जन व्यस्त हैं ढूँढ़ने में।

    एक सिफ़र ले गया कौआ,

    शायद वह सूटकेस की चाबी है।

    अथवा कोई ज़रूरी तारीख़ हो सकती है।

    (क्योंकि यहाँ उन्होंने

    पढ़ा तो था दो वर्षों तक आई०ए०

    बीस वर्ष पहले।)

    वे सज्जन आए हैं दूसरे शहर से।

    पीछे वह काफ़ी रास्ता छोड़ आए हैं, वाक़ई बहुत दूर।

    आँखों में उनकी खारी नदी की रेशमी हवा का

    एक हिस्सा लगा है, मूँछ थर-थर काँप रही है।

    जंगल के चढ़ाईदार रास्ते, ढलान सारे गिनकर

    कई प्रचलित भाषाएँ और क़ायदे वहाँ के समाज से

    ले, उन्होंने पोटली बनाई है! कितनी दूर की बातें

    आई हैं दूर राहगीर के साथ, बनकर उसका छाता।

    खो गया है शायद कुछ, हो सकता है, वह नाबी हो

    अथवा किसी धागे का छोर, अथवा और कुछ!

    हो सकता है कोई घटना भी, अथवा कोई लकीर,

    अथवा किसी स्मृति की रेखा,

    मन की किसी सूखी नदी की धारा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बसंत के एकांत ज़िले में (पृष्ठ 72)
    • रचनाकार : सच्चिदानंद राउतराय
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

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