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ओ मेरे देश!

o mere desh!

हरप्रसाद दास

हरप्रसाद दास

ओ मेरे देश!

हरप्रसाद दास

और अधिकहरप्रसाद दास

    मेरे देश!

    आया हूँ मैं बहुत दूर से

    उड़ते-उड़ते थक गए मेरे पंख

    पथ-भूला सा आया हूँ

    चंद्रालोक से,

    अधसुनी परीकथा से

    नींद का अँधेरा बन आया हूँ

    तेरी स्मृति के आरंभ तक।

    दूँ मैं तुझे अपनी क्लांति की मुट्ठी भर राख?

    दूँ मैं तुझे आर्द्र इतिहास से निकालकर

    अपने सारे के सारे सारस?

    तेरी भौंहों में इतना कलुष कहाँ से आता है

    मेरे देश?

    बहाता मुझे किसी की

    होश खोने की हस्तिना में

    बनने को महज़ एक पृष्ठ महाकाव्य का,

    तेरे लहू में इतना कलुष

    आता है कहाँ से मेरे देश?

    राह देखता हूँ—

    आता हो शायद

    मेरा वह आख़िरी प्रतिरूप

    बस में सवार

    हाथों में उठाए गठरी

    अधिकार के फल-मूल से भरी

    कहता हुआ छाया से, माँ!

    अब और नहीं जाऊँगा बिदेस

    रहूँगा घर पर

    तेरे ही पास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देश (पृष्ठ 11)
    • रचनाकार : हरप्रसाद दास
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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