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नर्स के लिए लोरी

nurse ke liye lori

अनाम कवि

अनाम कवि

नर्स के लिए लोरी

अनाम कवि

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    बूँद-बूँद घटती सेलाइन की बोतल की तरह

    वसंत जीवन का जा रहा है

    कहीं और जीवन की तलाश में जगह बनाने

    रोग और मृत्यु से लड़ने

    दवाएँ और शीशियाँ, गोलियाँ और कैप्सूल

    रखे हैं जीवन के शस्त्रागार में

    सुबह की धूप तुम्हारी पोशाक पर ठहर गई है

    नींद तुम्हारी आँखों को सताने नहीं आती

    एक संतरी की तरह तुम मुस्तैद हो

    फ़र्श पर ठकाठक सैंडिल बजातीं

    नाचती फिरती हो फिरकनी की तरह

    बहुत निकट से तुम देखती हो मृत्यु को उतरते

    बहुत निकट से दर्ज करती हो जीवन की हलचल

    कभी-कभी सुन लेती हो मृत्यु की पदचापें

    कह देती हो एक विधवा के कान में

    कि ‘अब उसे ले जाओ घर की छाँव में’

    विदा लेते कितने मरीज़ तुम्हारी मुस्कानों का

    जवाब देते हैं लौटकर

    कितने परिचय मिट जाते हैं धुँध की तरह

    मृत्यु से लड़ने में कमज़ोर पड़ते बूढ़ों को

    तुम डाँटती हो माँ की तरह

    एक-एक लापरवाही पर रखती हो नज़र, परीक्षक की तरह

    रात के चौथे पहर देख नहीं पाती

    बाहर पेड़ों से गिरती पत्तियाँ

    हालाँकि ड्यूटी-रूम में

    एक आरामकुर्सी रहती है तुम्हारे इंतज़ार में

    लेकिन तुम अपने सपनों को

    स्थगित कर देती हो, दिन के लिए

    बदलकर पोशाक, थकी और बोझिल लौटती हो घर

    तब शुरू होती है, तुम्हारे हिस्से की रात

    सो जाओ कि तुम खड़ी हो जीवन के पक्ष में

    कि मरीज़ों की कराहें अब मद्धिम पड़ गई हैं

    और ड्यूटी रूम की घंटी

    तुम्हारे लिए नहीं बज रही है

    सो जाओ कि गुनगुनी धूप

    तुम्हें जगाने नहीं आई है

    वह मैदान में पसर रही है तुम्हारी खिड़की से दूर

    सो जाओ कि लोगों की आँखों में उम्मीद जगाने

    जीवन ने तुम्हें चुना है

    काले दिनों पर तुम्हारी धवलता फैल गई है

    सो जाओ कि अब तुम्हारी जगह धूप गई है

    पोशाक बदलकर

    धूप में खिल रहे मौसम के फूलों की ख़ुशबू

    भर रही है तुम्हारे सपनों में

    बाहर चहकती, चिड़िया अब चहक रही है तुम्हारे सपनों में

    वसंत के आगमन का संदेश देती हुई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक अनाम कवि की कविताएँ (पृष्ठ 136)
    • संपादक : दूधनाथ सिंह
    • रचनाकार : अनाम कवि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2016

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