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नियति का हाथ

niyti ka hath

ममता बारहठ

ममता बारहठ

नियति का हाथ

ममता बारहठ

और अधिकममता बारहठ

    मैं नियति का हाथ पकड़ लूँगी अबके

    जब कभी वह लिखेगी मिलन हमारा

    उस मिलन के बीच ठहर जाएगी

    जाने कितनी सदियाँ

    फिर उसी नियति के नाम पर

    हम डूबे रहेंगे बग़ैर किसी हलचल के

    साँसों को सौंपकर

    एक दूजे के हाथों में

    एक दूजे की आँखों में आँखें रोक कर

    ऐसे देखेंगे

    जैसे अलग-अलग समंदरों में उछलती

    दो मछलियाँ प्रेम कर बैठी है एक दूजे से

    मछलियाँ उछाल में होंगी और

    तभी नियति लिखती होगी मिलन

    और उसी मिलन में

    हाथ थाम लूँगी मैं नियति का और

    उछाल में रोक लूँगी ख़ुद को इस बार

    घुप् अँधेरी रात में जब आसमाँ में उग आएँगे

    सात सूरज एक साथ

    सागर जब अपनी ओर बुलाएगा

    पाँवों में जब लहरें उठा-पटक मचाएँगी

    पहाड़ अपने सीने में छिपा कोई बीज़

    जब मेरी हथेली पर ला उगाएगा

    बीज जब फूटता होगा कोंपल से फूल बनकर

    तभी नियति लिख देगी : मिलन

    और मैं ठीक उसी क्षण थाम लूँगी हाथ

    नियति का इस बार और

    रोक लूँगी ख़ुद को फूल के खिलने में इस बार

    जब खोलूँगी द्वार बेपहचान की दस्तक पर

    जब कोई अनजानी आवाज़ लगने लगेगी बेहद अपनी-सी

    जब कोई पुकार अक्षरों से अलग मुझे पुकारेगी

    जब तुम गीत गुनगुनाओगे मिलन का

    बीती विदा को याद कर

    मुझे सख़्त ज़मीन से उठाकर

    तुम हवाओं से बुनने लगोगे

    ऐसे क्षणों में नियति लिखना भूल जाएगी

    और हम उसका हाथ पकड़कर लिख देंगे :

    मिलन

    जब रात कोई भय चुपके से मुझमें फिर उतर आएगा

    तुमसे दूर मैं तुम्हें खोने से डरने लगूँगी

    जब हमारे बीच फैली इस बड़ी दुनिया को

    पार करने की बैचेनी में

    करवटें बदल-बदलकर थकूँगी

    जब लूँगी नाम तुम्हारा और बारिश बूँद-बूँद कर झड़ी बन जाएगी

    उस रात तुम्हारी हथेली

    बेहद प्यारे सपने-सी

    जब मेरे दिल पर खुल जाएगी

    ठीक उसी समय मैं नियति को छोड़

    थाम लूँगी हाथ तुम्हारा

    और नियति की लिखी बातों के मायने बदल जाएँगे

    जहाँ-जहाँ लिखा 'विदा' उसने

    वहीं-वहीं अब 'साथ' लिखा नज़र आएगा!

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता बारहठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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