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निर्वात

nirvat

सोनल

सोनल

निर्वात

सोनल

पानी के भीतर गई लकड़ी

दिखने लगती है ज़रा तिरछी

हवा की कई-कई परतें पार करते हुए

टिम-टिमाने लगते हैं तारे

प्रकाश और ध्वनी की गतियों की तरह

हमारी नजदीकियाँ और दूरीयाँ भी

उस मौसम के सापेक्ष घटती बढ़ती है

जो कभी सघन तो कभी विरल होता है

एक ताप होता है जो उड़ा देता है

मेरे स्पर्श की नमी

और तुम्हें एक खारेपन का स्वाद देता है

तुम्हारी आवाज़ कभी-कभी

जाने कैसी सूखी हवा पर सवार होकर आती है

और हमारे बीच आग लगा जाती है

क्या तुमने ख़्याल किया है कभी

हमारे बीच, अंतराल में अक्सर

एक प्रिज्म-सा तन जाता है

और नज़रों के कोण बदल जाते है

एक उस्ताद-सा सॉफ्टवेयर है कोई

जिससे शब्दों के अर्थ उलट जाते हैं

जाने कितने दबाव खिचाव फैले हैं हमारे बीच

जो एक-दूसरे की नज़रों में हमारा होना बदल रहे हैं

ग़ुस्सा प्यार

दोस्ती तक़रार

सापेक्ष है सब कुछ

उसके जो हरपल बदलता रहता है

कुछ भी तो हमारे बस में नहीं!

स्रोत :
  • रचनाकार : सोनल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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